महाभारत शल्य पर्व अध्याय 56 श्लोक 23-42
षट्पन्चाशत्तम (56) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
‘आज एक दिन में इसका वध करके मैं अपने आप से उऋण हो जाऊंगा। भरतभूषण ! आज दुर्बुद्धि एवं अजितात्मा धृतराष्ट्र पुत्र की आयु समाप्त हो गयी है। इसे माता पिता के दर्शन का अवसर भी अब नहीं मिलने वाला है । ‘राजेन्द्र ! महाराज ! आज खोटी बुद्धि वाले कुरुराज दुर्योधन का सारा सुख समाप्त हो गया। अब इसके लिये पुनः अपनी स्त्रियों को देखना और उनसे मिलना असम्भव है । ‘कुरुराज शान्तनु के कुल का यह जीता-जागता कलंक आज अपने प्राण, लक्ष्मी तथा राज्य को छोड़ कर सदा के लिये पृथ्वी पर सो जायगा । ‘आज राजा धृतराष्ट्र अपने इस पुत्र को मारा गया सुन कर अपने उन अशुभ कर्मो को याद करेंगे, जिन्हें उन्होंने शकुनि की सलाह के अनुसार किया था’ । नृपश्रेष्ठ ! ऐसा कहकर पराक्रमी भीमसेन हाथ में गदा ले युद्ध के लिये खड़े हो गये और जैसे इन्द्र ने वृत्रासुर को ललकारा था, उसी प्रकार वे दुर्योधन का आहान करने लगे । शिखरयुक्त कैलास पर्वत के समान गदा उठाये दुर्योधन को खड़ा देख भीमसेन पुनः कुपित हो उससे इस प्रकार बोले- ‘दुर्योधन ! वारणावत नगर में जो कुछ हुआ था, राजा धृतराष्ट्र के और अपने भी उस कुकर्म को तू याद कर ले । ‘तूने भरी सभा में जो रजस्वा द्रौपदी को अपमानित करके उसे क्लेश पहुंचाया था, सुबल पुत्र शकुनि के द्वारा जूए में जो राजा युधिष्ठिर को ठग लिया था, तुम्हारे कारण हम सब लोगों ने जो वन में महान् दुःख उठाया था और विराट नगर में जो हमें दूसरी योनि में गये हुए प्राणियों के समान रहना पड़ा था; इन सब कष्टों के कारण मेरे मन में जो क्रोध संचित है, वह सब का सब आज तुझ पर डाल दूंगा। दुर्मते ! सौभाग्य से आज तू मुझे दीख गया है । ‘तेरे ही कारण रथियों में श्रेष्ठ प्रतापी गंगानन्दन भीष्म द्रुपदकुमार शिखण्डी के हाथ से मारे जाकर बाणशय्या पर सो रहे हैं । ‘द्रोणाचार्य, कर्ण और प्रतापी शल्य मारे गये तथा इस वैर की आग को प्रज्वलित करने में जिसका सबसे पहला हाथ था, वह सुबल पुत्र शकुनि भी मार डाला गया । ‘द्रौपदी को क्लेश देने वाला पापत्मा प्रातिकामी भी मारा गया। साथ ही जो पराक्रमपूर्वक युद्ध करने वाले थे, वे तेरे सभी शूरवीर भाई भी मारे जा चुके हैं । ‘ये तथा और भी बहुत से नरेश तेरे लिये युद्ध में मारे गये हैं । आज तुझे भी गदा से मार गिराऊंगा, इसमें संशय नहीं है’ । राजेन्द्र ! इस प्रकार उच्च स्वर से बोलने वाले भीमसेन से आपके सत्य पराक्रमी पुत्र ने निर्भय होकर कहा-‘वृकोदर ! बहुत बढ़-बढ़ कर बातें बनाने से क्या लाभ ? तू मेरे साथ संग्राम कर ले। कुलाधम ! आज मैं तेरा युद्ध का हौसला मिटा दूंगा । ‘ओ नीच ! तेरे-जैसा कोई भी मनुष्य अन्य प्राकृत पुरुष के समान दुर्योधन को वाणी द्वारा नहीं डरा सकता । ‘सौभाग्य की बात है कि मेरे हृदय में दीर्घकाल से जो तेरे साथ गदायुद्ध करने की अभिलाषा भी, उसे देवताओं ने पूर्ण कर दिया । ‘दुर्बुद्धे ! वाणी द्वारा बहुत शेखी बघारने से क्या होगा ? तू जो कुछ कहता है, उसे शीघ्र ही कार्य रूप में परिणत कर’ । दुर्योधन की यह बात सुनकर वहां आये हुए समस्त राजाओं तथा सोमकों ने उसकी बड़ी सराहना की ।
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