महाभारत शल्य पर्व अध्याय 57 श्लोक 37-57
सप्तपन्चाशत्तम (57) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
इस प्रकार दिन की समाप्ति के समय, उन दोनों वीरों में प्रकट रूप में वृत्रासुर और इन्द्र के समान क्रूरतापूर्ण एवं भयंकर युद्ध होने लगा । तदनन्तर विचित्र मार्गो से विचरते हुए आपके महाबली पुत्र ने कुन्ती कुमार भीमसेन को खड़ा देख उन पर सहसा आक्रमण किया । यह देख क्रोध में भरे भीमसेन ने अत्यन्त कुपित हुए दुर्योधन की सुवर्णजटित उस महावेगशालिनी गदा पर ही अपनी गदा से आघात किया । महाराज ! उन दोनों गदाओं के टकराने से भयंकर शब्द हुआ और आग की चिनगारियां छूटने लगी। उस समय ऐसा जान पड़ा, मानो दोनों ओर से छोड़े गये दो वज्र परस्पर टकरा गये हो । राजेन्द्र ! भीमसेन की छोड़ी हुई उस वेगवती गदा के गिरने से धरती डोलने लगी । जैसे क्रोध में भरा हुआ मतवाला हाथी अपने प्रतिद्वन्द्वी गजराज को देखकर सहन नहीं कर पाता, उसी प्रकार रणभूमि में अपनी गदा को प्रतिहत हुई देख कुरुवंशी दुर्योधन नही सह सका । तत्पश्चात् राजा दुर्योधन ने अपने मन में दृढ़ निश्चय लेकर बाये मण्डल से चक्कर लगाते हुए अपनी भयंकर वेगशाली गदा से कुन्ती कुमार भीमसेन के मस्तक पर प्रहार किया । महाराज ! आपके पुत्र के आघात से पीडि़त होने पर भी पाण्डु पुत्र भीमसेन विचलित नही हुए। वह अदभुत सी बात हुई । राजन् ! गदा की चोट खाकर भी जो भीमसेन एक पग भी इधर-उधर नहीं हुए, वह महान् आश्चर्य की बात थी, जिसकी सभी सैनिकों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की । तदनन्तर भयंकर पराक्रमी भीमसेन ने दुर्योधन पर अपनी सुवर्णजटित तेजस्विनी एवं बड़ी भारी गदा छोड़ी । परंतु महाबली दुर्योधन को उससे तनिक भी घबराहट नहीं हुई उसने फुर्ती से इधर-उधर होकर उस प्रहार को व्यर्थ कर दिया। यह देख वहां सब लोगों को महान् आश्चर्य हुआ । राजन् ! भीमसेन की चलायी हुई वह गदा जब व्यर्थ होकर गिरने लगी, उस समय उसने वज्रपात के समान महान् शब्द प्रकट करके पृथ्वी को हिला दिया । जब राज दुर्योधन ने देखा कि भीमसेन की गदा नीचे गिर गयी और उनका वार खाली गया, तब क्रोध में भरे हुए महाबली कुरुश्रेष्ठ दुर्योधन ने कौशिक मार्गो का आश्रय ले बार बार उछलकर भीमसेन को धोखा देकर उनकी छाती में गदा मारी । उस महासमर में आपके पुत्र की गदा की चोट खाकर भीमसेन मूर्छित से हो गये और एक क्षण तक उन्हें अपने कर्तव्य का ज्ञान तक न रहा । राजन् ! जब भीमसेन की ऐसी अवस्था हो गयी, उस समय सोमक और पाण्डव बहुत ही खिन्न और उदास हो गये। उनकी विजय की आशा नष्ट हो गयी । उस प्रहार से भीमसेन मतवाले हाथी की भांति कुपित हो उठे और जैसे एक गजराज दूसरे गजराज पर धावा करता है, उसी प्रकार उन्होंने आपके पुत्र पर आक्रमण किया । जैसे सिंह जंगली हाथी पर झपटता है, उसी प्रकार भीमसेन गदा लेकर बड़े वेग से आपके पुत्र की ओर दौड़े । राजन् ! गदा का प्रहार करने में कुशल भीमसेन ने आपके पुत्र राजा दुर्योधन के निकट पहुंच कर गदा घुमायी और उसे मार डालने के उद्देश्य से उसकी पसली में आघात किया । राजन् ! उस प्रहार से व्याकुल हो आपका पुत्र पृथ्वी पर घुटने टेक कर बैठ गया। उस कुरुकुल के श्रेष्ठ वीर दुर्योधन के घुटने टेक देने पर सृंजयों ने बड़े जोर से हर्षध्वनि की ।
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