महाभारत शल्य पर्व अध्याय 6 श्लोक 19-29
षष्ठ (6) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
अश्वत्थामा ने कहा- ये राजा शल्य उत्तम कुल, सुन्दन रूप, तेज, यश, श्री एवं समस्त सद्रुणों से सम्पन्न हैं, अतः ये ही हमारे सेनापति हों। ये ऐसे कृतज्ञ हैं कि अपने सगे भागजों को भी छोड़कर हमारे पक्ष में आ गये हैं। ये महाबाहु शल्य दूसरे महासेन (कार्तिकेय) के समान महती सेना से सम्पन्न हैं ।।20।। नृपश्रेष्ठ ! जैसे देवताओं ने किसी से पराजित न होने वाले स्कन्द को सेनापति बनाकर असुरों पर विजय प्राप्त की थी, उसी प्राकर हम लोग भी इन राजा शल्य को सेनापति बनाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। द्रोणपुत्र के ऐसा कहने पर सभी नरेश राजा शल्य को घेरकर खडे़ हो गये और उनकी जय-जयकार करने लगे। उन्होंने युद्ध के लिये पूर्ण निश्चय कर लिय और वे अत्यन्त आवेश में भर गये। तदनन्तर राजा दुर्योधन ने भूमि पर खड़ा रथ पर बैठे हुए रणभूमि में द्रोण और भीष्म के समान पराक्रमी राजा शल्य से हाथ जोड़कर कहा- मित्रवत्सल ! आज आपके मित्रों के सामने वह समय आ गया है जब कि विद्वान् पुरूष शत्रु या मित्र की परीक्षा करते हैं। आप हमारे शूरवीर सेनापति होकर सेना के मुहाने पर खडे़ हों। रणभूमि में आपके जाते ही मन्दबुद्धि पाण्डव और पांचाल अपने मंत्रियों सहित उद्योगशून्य हो जायँगे। उस समय वचन के रहस्य को जानने वाले मद्रदेश के स्वामी राजा शल्य दुर्योधन के वचन सुनकर समस्त राजाओं के सम्मुख राजा दुर्योधन से यह वचन बोले। शल्य बोले- राजन् ! कुरूराज ! तुम मुझसे जो कुछ चाहते हो, मैं उसे पूर्ण करूँगा; क्योंकि मेरे प्राण, राज्य और धन सब तुम्हारा प्रिय करने के लिये ही हैं।
दुर्योधन ने कहा- योद्धाओं में श्रेष्ठ मामाजी ! आप अनुपम वीर हैं। अतः मैं सेनापति पद ग्रहण करने के लिये आपका वरण करता हूँ । जैसे स्कन्द ने युद्धस्थल में देवताओं की रक्षा की थी, उसी प्रकार आप हम लोगों का पालन कीजिये।
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