महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 153 श्लोक 52-67

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त्रिपञ्चाशदधिकशततम (153) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: त्रिपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 52-67 का हिन्दी अनुवाद

यह बालक तुम्‍हारे अपने ही रक्‍त–मांस का बना हुआ है, आधे शरीर के समान है और पितरों के वंश की वृद्धि करने वाला है, इसे वन में छोड़कर तुम कहां जाओगे? अच्‍छा, इतना ही करो कि जब तक सूर्य अस्‍त न हो और संध्‍याकाल उपस्थित न हो जाय, तब तक यहां रूके रहो; फिर अपने इस पुत्र को साथ ले जाना अथवा यहां बैठे रहना। गीध ने कहा-मनुष्‍यों! मुझे जन्‍म लिये आज एक हजार वर्ष से अधिक हो गये; परंतु मैंने कभी किसी स्‍त्री-पुरूष या नपुंसक को मरने के बाद फिर जीवित होते नहीं देखा। कुछ लोग गर्भों में ही मरकर जन्‍म लेते हैं, कुछ जन्‍म लेते ही मर जाते हैं, कुछ चलने–फिरने लायक होकर मरते हैं और कुछ लोग भरी जवानी में ही चल बसते हैं। इस संसार में पशुओं और पक्षियों के भी भाग्‍यफल अनित्‍य हैं। स्‍थावरों और जंगमों के जीवन में भी आयु की ही प्रधानता है। प्रिय पत्‍नी के वियोग और पुत्रशोक से संतप्‍त हो कितने ही प्राणी प्रतिदिन शोक की आग में जलते हुए इस मरघट से अपने घर को लौटते हैं । कितने ही भाई–बंधु अत्‍यंत दुखी हो यहां हजारों अप्रिय तथा सैकड़ों प्रिय व्‍यक्तियों को छोड़कर चले गये हैं। यह मृत बालक तेजोहीन होकर थोथे काठ के समान हो गया है। इसे छोड़ दो। इसका जीव दूसरे शरीर में आसक्‍त है। इस निष्‍प्राण बालक का यह शव काठ के समान हो गया है तुम लोग इसे छोड़कर चले क्‍यों नहीं जाते? तुम्‍हारा यह स्‍नेह निरर्थक है और इस परिश्रम का भी कोई फल नहीं है। यह न तो आंखों से देखता है और न कानों से कुछ सुनता ही है। फिर इसे त्यागकर तुम लोग जल्दी अपने घर क्यों नहीं चले जाते। मेरी ये बातें बड़ी निष्‍ठुर जान पड़ती है; परंतु हेतुगर्भित और मोक्ष-धर्म से सम्‍बन्ध रखने वाली है; अत: इन्‍हें मानकर मेरे कहने से तुम लोग शीघ्र अपने-अपने घर पधारो। मनुष्‍यो! मैं बुद्धि और विज्ञान से युक्‍त तथा दूसरों को भी ज्ञान प्रदान करने वाला हूं । मैंने तुम्‍हें विवेक उत्पन्न करने वाली उत्पन्न करने वाली बहुत-सी बातें सुनायी है। अब तुम लोग लौट जाओ। अपने मरे हुए स्‍वजन का शव देखकर तथा उसकी चेष्‍टाओं को स्‍मरण करके दूना शोक होता है। गीध की यह बात सुनकर वे सब मनुष्‍य घर की ओर लौट पडे़। तब सियार ने तुरंत आकर उस सोते हुए बालक को देखा। सियार बोला-बन्‍धुओ! देखो तो सही, इस बालक का रंग कैसा सोने के समान चमक रहा है। आभूषणों से भूषित होकर यह कैसी शोभा पाता है। पितरों को पिण्‍ड प्रदान करने वाले अपने इस पुत्र को तुम गीध की बातों में आकर कैसे छोड़ रहे हो? इस मृत बालक को छोड़कर जाने से न तो तुम्‍हारे स्नेह में कमी आयेगी और न तुम्हारा रोना–धोना एवं विलाप ही बन्द होगा। उलटे तुम्हारा संताप और बढ जायगा, यह निश्चित है। सुना जाता है कि सत्यपराक्रमी श्रीरामचन्द्रजी से शम्बूक नामक शूद्र के मारे जाने पर उस धर्म के प्रभाव से एक मरा हुआ ब्राह्मण बालक जीवित हो उठा था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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