महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 175 श्लोक 13-25
पञ्चसप्तत्यधिकशततम (175) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
जैसे घास चरते हुए भेंडे़ के पास अचानक व्याघ्री पहुंच जाती है और उसे दबोचकर चल देती है, उसी प्रकार मनुष्य का मन जब दूसरी ओर लगा होता है, उसी समय सहसा मृत्यु आ जाती है ओर उसे लेकर चल देती है। इसलिये जो कल्याणकारी कार्य हो, उसे आज ही कर डालिये। आपका यह समय हाथ से निकल न जाए, क्योंकि सारे काम अधूरे ही पडे़ रह जायंगे और मौत आपको खींच ले जायगी। कल किया जाने वाला काम आज ही पूरा कर लेना चाहिये। जिसे सायंकाल में करना है उसे प्रात:काल में ही कर लेना चाहियें, क्योंकि मौत यह नहीं देखती कि इसका काम अभी पूरा हुआ कि नहीं। कौन जानता है कि किसका मृत्यु काल आज ही उपस्थित होगा? सम्पूर्ण जगत् पर प्रभुत्व रखने वाली मृत्यु जब किसी को हराकर ले जाना चाहती है तो उसे पहले से निमन्त्रण नहीं भेजती है। जैसे मछुवारे चुपके से आकर मछलियों को पकड़ लेते हैं, उसी प्रकार मृत्यु भी अज्ञात रहकर ही आक्रमण करती है। अत: युवावस्था में ही सबको धर्म का आचरण करना चाहिये, क्यों कि जीवन नि:संदेह अनित्य है। धर्माचरण करने से इस लोक में मनुष्य की कीर्ति का विस्तार होता है और परलोक में भी उसे सुख मिलता है। जो मनुष्य मोह में डूबा हुआ है, वही पुत्र और स्त्री के लिये उद्योग करने लगता है, और करने तथा न करने योग्य काम करके इन सबका पालन–पोषण करता है। जैसे सोये हुए मृग को बाघ उठा ले जाता है, उसी प्रकार पुत्र और पशुओं से सम्पन्न एवं उन्हीं में मन को फंसाये रखने वाले मनुष्य को एक दिन मृत्यु आकर उठा ले जाती है। जब तक मनुष्य भोगों से तृप्त नहीं होता, संग्रह ही करता रहता है, तभी तक ही उसे मौत आकर ले जाती है। ठीक वैसे ही, जैसे व्याघ्र किसी पशु को ले जाता है। मनुष्य सोचता है कि यह पूरा हो गया, यह अभी करना है और यह अधूरा ही पड़ा है- इस प्रकार चेष्टाजनित सुख में आसक्त हुए मानव को काल अपने वश में कर लेता है। मनुष्य अपने खेत, दुकान और घर में ही फंसा रहता है, उसके किये हुए उन कर्मों का फल मिलने भी नहीं पाता, उसके पहले ही उस कर्मासक्त मनुष्य को मृत्यु उठा ले जाती है। कोई दुर्बल हो या बलवान्, शूरवीर हो या डरपोक तथा मूर्ख हो या विद्वान, मृत्यु उसकी समस्त कामनाओं के पूर्ण होने से पहले ही उसे उठा ले जाती है। पिताजी, जब इस शरीर में मृत्यु, जरा, व्याधि और अनेक कारणों से होने वाले दु:खों का आक्रमण होता ही रहता है, तब आप स्वस्थ–से होकर क्यों बैठे हैं? देहधारी जीव के जन्म लेते ही अन्त करने के लिये मोत और बुढ़ापा उसके पीछे लग जाते हैं। ये समस्त चराचर प्राणी इन दोनों से बंधें हुए हैं। ग्राम यह नगर में रहकर जो स्त्री-पुत्र आदि में आसक्ति बढा़यी जाती है, यह मृत्यु का मुख ही है और जो वन का आश्रय लेता है, यह इन्द्रियरूपी गौओं को बांधने के लिये गोशाला के समान है, यह श्रुति का कथन है।
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