महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 202 श्लोक 22-23
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द्वयाधिकद्विशततम (202) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
जब जीवात्मा उपार्जित नवीन शरीर में स्थित होता है, उस समय वह पहले जो शुभाशुभ कर्म किये हुए हैं उन्हीं का फल प्राप्त करता है । जैसे जल जन्तु जल के अनुकूल प्रवाह का अनुसरण करते हैं, उसी प्रकार पूर्वकृत अच्छे और बुरे कर्म मन का अनुगमन करते हैं अर्थात् मन के द्वारा फल के प्रदान करते है। जैसे शीध्रगामी नौकापर बैठे हुए पुरूष की दृष्टि में पार्श्ववर्ती वृक्ष पीछे की ओर वेग से भागते हुए दिखायी देते हैं, उसी प्रकार कूटस्थ निर्विकारी आत्मा बुद्धि के विकार से विकारवान् सा प्रतीत होता है एवं जैसे चश्मे या दूरबीन से महीन अक्षर मोटा दीखता है, उसी प्रकार सूक्ष्म आत्मतत्व भी बुद्धि, विवेक-समूह शरीर से संयुक्त होने के कारण शरीर के रूप में प्रतीत होने लगता है । तथा जैसे स्वच्छ दर्पण अपने मुख का प्रतिबिम्ब दिखा देता है, उसी प्रकार शुद्ध बुद्धि में आत्माके स्वरूप की झॉकी उपलब्ध हो जातीहै।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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