महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 206 श्लोक 29-32
षडधिकद्विशततम (206) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
सम्पूर्ण इन्द्रियों से संयुक्त होकर यह देहधारी जीव पंचभूतस्वरूप शरीर के आश्रित हो जाता है । ज्ञान और उपासना आदि की शक्ति के बिना वह केवल कर्मों द्वारा परमात्मा को नहीं पाता । अत: वह उस अविनाशी परमेश्वर से वंचित रह जाता है। इस भूतल पर रहनेवाला मनुष्य यद्यपि इस पृथ्वी का अन्त नहींदेखता है तो भी कहींन कहीं इसका अन्त अवश्य है, ऐसा समझो । जैसे समुद्र में लहरों द्वारा ऊपर-नीचे होते हुए जहाज को प्रवाह के अनुकूल बहती हुई हवा तटपर लगा देती है, उसी प्रकार संसार समुद्र में गोता लगाते हुए मनुष्य को अनुकूल वातावरण संसार सागर से पार कर देता है। सम्पूर्ण जगत का प्रकाशक सूर्य प्रकाशरूपी गुण को पाकर भी अस्ताचल को जाते समय अपने किरणसमूह को समेटकर जैसे निर्गुण हो जाता है, उसी प्रकार भेदभाव से रहित हुआ मुनि यहॉ अविनाशी निर्गुण ब्रह्मामें प्रवेश कर जाता है। जो कहीं से आया हुआ नहीं है, नित्य विद्यमान है, पुण्यवानों की परमगति है, स्वयम्भू (अजन्मा) है, सबकी उत्पत्ति और प्रलय का स्थान है, अविनाशी एवं सनातन है,अमृत, अविकारी एवं अचल है, उस परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करके मनुष्य परममोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
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