महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 211 श्लोक 15-17
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दशाधिकद्विशततम (210) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
अत: विवेकी पुरूष को क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का यह अन्तर जान लेना चाहिये । इन दोनों के तादात्म्य का सा अभ्यास हो जाने से जीव ऐसा हो गया है कि उसे अपने शुद्ध स्वरूप का पता ही नहीं लगता। (भीष्मजी कहते हैं -) इस प्रकार उन महर्षि भगवान गुरूदेव ने शिष्य के उत्पन्न हुए इस संदेह को काट डाला । अत: विद्वान् पुरूष ऐसे उपायों पर दृष्टि रखे, जो क्रिया द्वारा उद्देश्य की सिद्धि में सहायक हों। जैसे आग में भूने हुए बीज नहीं उगते, उसी प्रकार ज्ञानरूपी अग्नि से अविद्यादि सब क्लेशों के दग्ध हो जाने पर जीवात्मा को फिर इस संसार मे जन्म नही लेना पड़ता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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