महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 220 भाग 9
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विंशत्यधिकद्विशततम (220) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
जो बहुत बड़ी सम्पत्ति पाकर हर्ष से फूल नहीं उठता और संकट में पड़ने पर शोक नहीं करता, वह द्विज सूक्ष्म बुद्धि से युक्त एवं जितेन्द्रिय कहलाता है। जो वेदशास्त्रों का ज्ञाता और सत्पुरूषों द्वारा आचरण में लाये हुए शुभ कर्मो से पवित्र है तथा जिसने सदा ही दम का पालन किया है, वह अपने शुभकर्मका महान् फल भोगता है। किसी के दोष न देखना, हृदय में क्षमाभाव रखना, शान्ति, संतोष, मीठे वचन बोलना, सत्य, दान तथा क्रिया में परिश्रम का बोध न होना ये सद्गुण हैं । दुरात्मा पुरूष इस मार्ग से नहीं चलते हैं। उनमें तो काम, क्रोध, लोभ, दूसरों के प्रति डाह और अपनी झूठी प्रशंसा आदि दुर्गुण ही भरे रहते हैं; इसलिये उत्तम एवं कठोर व्रत का पालन करनेवाले ब्राह्राण को चाहिये कि वह जितेन्द्रिय होकर काम और क्रोध को वश में करे तथा ब्रह्राचर्यपालनपूर्वक उत्साह के साथ घोर तपस्या में संलग्न हो जाय एवं मृत्युकाल की प्रतीक्षा करता हुआ विघ्न बाधाओं से रहित हो धैर्यपूर्वक सम्पूर्ण जगत् में विचरे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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