महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 232 श्लोक 40-43

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द्वा‍त्रिंशदधिद्विशततम (232) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: द्वा‍त्रिंशदधिद्विशततम श्लोक 40-43 का हिन्दी अनुवाद


जैसे वसन्‍त आदि ऋतुओं में फूल और फल आदि नाना प्रकार के ऋतुचिह्न दृष्टिगोचर होते हैं और भिन्‍न ऋतुओं में उन चिह्नों का दर्शन नहीं होता, उसी प्रकार ब्रह्रा, विष्‍णु और महेश्‍वर में भी सृष्टि, रक्षा और संहार की शक्तियॉ कभी न्‍यून और कभी अधिक दिखायी देती हैं । स्‍वयं ब्रह्राजी ने ही सत्‍ययुग, त्रेता आदि के रूप में कालभेद का विधान किया है ।वह अनादि और अनन्‍त है । वह काल ही लोक की सृष्टि और संहार करता है । बेटा ! यह बात मैं तुमसे पहले ही बता चुका हॅू । काल ही सम्‍पूर्ण प्राणियों को संयम और नियम में रखनेवाला है । वही उनकी उत्‍पत्ति के लिये स्‍थान धारण करता है । सारे प्राणी स्‍वभाव से ही द्वन्‍द्वों से युक्‍त होकर अत्‍यन्‍त कष्‍ट पाते हैं । बेटा ! तुमने मुझसे जो कुछ पूछा था, उसके अनुसार मैंने सृष्टि, काल, क्रिया, वेद, कर्ता, कार्य तथा क्रियाफल आदि सब विषय बता दिये ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुकदेवजी का अनुप्रश्‍न विषयक दो सौ बत्तीसवॉ अध्‍याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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