महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 271 श्लोक 52-56
एकसप्तत्यधिकद्विशततम (271) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
(कुण्डधार ने कहा -) 'विप्रवर ! मैं तो पहले से ही क्षमा कर चुका हूँ' ऐसा कहकर उस मेघ ने उस श्रेष्ठ ब्राह्मण को अपनी दोनों भुजाओं द्वारा हृदय से लगा लिया और वह फिर वहीं अन्तर्धान हो गया । तदनन्तर कुण्डधार के कृपाप्रसाद से तपस्याद्वारा सिद्धि पाकर वह ब्राह्मण सम्पूर्ण लोकों में विचरने लगा ।
आकाश मार्ग से चलना, संकल्प मात्र से ही अभीष्ट वस्तु का प्राप्त हो जाना तथा धर्म, शक्ति और योग के द्वारा जो परमगति प्राप्ति होती है, वह सब कुछ उस ब्राह्मण को प्राप्त हो गयी । देवता, ब्राह्मण्, साधु-संत, यक्ष, मनुष्य और चारण-ये सब-के-सब इस जगत में धर्मात्माओं का ही पूजन करते हैं, धनियों और भोगियों का नहीं । राजन् ! तुम्हारे ऊपर भी देवता बहुत प्रसन्न है, जिससे तुम्हारी बुद्धि धर्म में लगी हुई है। धन में तो सुख का कोई लेशमात्र ही रहता है। परमसुख तो धर्म में ही है ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में कुण्डधार का उपाख्यान विषयक दो सौ इकहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ ।
« पीछे | आगे » |