महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 274 श्लोक 15-19
चतु: सप्तत्यधिकद्विशततम (274) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
ध्यान, अध्ययन, दान, सत्य, लज्जा, सरलता, क्षमा, बाहर-भीतर की पवित्रता, आहारशुद्धि और इन्द्रियों का संयम-ये ही योग के साधन हैं। इन सबके द्वारा साधक का तेज बढता है। वह अपने पापों का नाश कर डालता है। उसके संकल्प सिद्ध होने लगते हैं और हृदय में विज्ञान का आविर्भाव हो जाता है । इस प्रकार जब पाप धुल जाएँ और साधक तेजस्वी, मिताहारी और जितेन्द्रिय हो जाय, तब वह काम और क्रोध को अपने अधीन करके अपने-आपको ब्रह्मपद में प्रतिष्ठित करने की इच्छा करे । मूढता और आसक्ति का अभाव, काम और क्रोध का त्याग एवं दीनता, उद्दण्डता तथा उद्वेग से रहित होना और चित्त की स्थिरता एवं निष्काम भाव से मन, वाणी और इन्द्रियों का संयम- यह मोक्ष का स्वच्छ, निर्मल एवं पवित्र मार्ग है ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में योग सम्बन्धी आचार का वर्णन नामक दो सौ चौहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ ।
« पीछे | आगे » |