महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 283 श्लोक 57-63

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त्रयशीत्‍यधिकद्विशततम (283) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: त्रयशीत्‍यधिकद्विशततम अध्याय श्लोक 57-63 का हिन्दी अनुवाद

भगवान महेश्‍वर का तेजरूप यह ज्‍वर अत्‍यन्‍त दारूण है। यह मृत्‍युकाल में, जन्‍म के समय तथा बीच में भी मनुष्‍यों के शरीर में प्रवेश कर जाता है। यह सर्वसमर्थ माहेश्‍वर ज्‍वर समस्‍त प्राणियों के लिये वन्‍दनीय और माननीय है। इसी ने धर्मात्‍माओं में श्रेष्ठ वृत्रासुर के शरीर में प्रवेश किया था । भारत ! उस ज्‍वर से पीड़ित होकर जब वह जँभाई लेने लगा, उसी समय इन्‍द्र ने उस पर वज्र का प्रहार किया। वज्र ने उसके शरीर में घुसकर उसे चीर डाला । वज्र से विदीर्ण हुआ महायोगी एवं महान असुर वृत्र अमित तेजस्‍वी भगवान विष्‍णु के परम धाम को चला गया । भगवान विष्‍णु की भक्ति के प्रभाव से ही उसने अपनी विशाल कायाद्वारा इस सम्‍पूर्ण जगत को व्‍याप्‍त कर लिया था। अत: युद्ध में मारे जाने पर उसने विष्‍णुधाम प्राप्‍त कर लिया । बेटा ! इस प्रकार वृत्रासुर के वध के प्रसंग से मैंने महान माहेश्‍वर ज्‍वर की उत्‍पत्ति का वृतान्‍त विस्‍तार पूर्वक कह सुनाया । अब तुमसे और क्‍या कहूँ ? जो उदारचित एवं एकाग्र होकर ज्‍वर की उत्‍पति से संबंध रखने वाली इस कथा को सदा पढता है, वह मनुष्‍य रोगमुक्‍त, सुखी एवं प्रसन्‍न होकर मनोवांछित कामनाओं को प्राप्‍त कर लेता है ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्मपर्व में ज्‍वर की उत्‍पत्तिविषयक दो सौ तिरासीवाँ अध्‍याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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