महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 284 श्लोक 88-100
चतुरशीत्यधिकद्विशततम (284) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
आपका ताण्डव-नृत्य बराबर चलता रहता है। आप मुख से श्रृंगी आदि बाजे बजाने में कुशल हैं। कमल पुष्प की भेंट लेने के लिये सदा उत्सुक रहते हैं। गाने और बजाने की कला में तत्पर रहकर आप बड़ी शोभा पाते हैं। आपको प्रणाम है । आप अवस्था में सबसे ज्येष्ठ और गुणों में भी सबसे श्रेष्ठ हैं। आपने बल नामक दैत्य को इन्द्र रूप से मथ डाला था। आप काल के भी नियन्ता और सर्वशक्तिमान हैं। महाप्रलय और अवान्तर-प्रलय भी आप ही हैं। आपको नमस्कार है । प्रभों ! आपका अट्टाहास भयंकर शब्द करने वाली दुन्दुभि के समान जान पड़ता है। दस भुजाओं से सुशोभित होने वाले उग्ररूपधारी आपको मेरा नित्य बारंबार नमस्कार है । आपके हाथ में कपाल है। चिता का भस्म आपको बहुत प्रिय है। आप सबको भयभीत करने वाले और स्वयं निर्भय हैं तथा शम-दम आदि तीक्ष्ण व्रतों को धारण करते हैं। आपको नमस्कार है । आपका मुख विकृत है। जिह्वा खड़ग के समान है। आपका मुख दाढों से सुशोभित होता है। आप कच्चे-पक्के फलों के गुद्दे के लिये लुभायमान रहते हैं। तुम्बी और वीणा आपको विशेष प्रिय हैं। आपको प्रणाम है । आप वृष (वृष्टिकर्ता), वृष्य (धर्म की वृद्धि करने वाले ), गोवृष (नन्दी) और वृष (धर्म) आदि नामों से प्रसिद्ध हैं। कटंकट (नित्य गतिशील), दण्ड (शासक) और पचपच (सम्पूर्ण भूतों को पचाने वाला काल ) भी आपके ही नाम है। आपको नमस्कार है । आप सबसे श्रेष्ठ वरस्वरूप और वरदाता हैं। उत्तम वस्त्र, माल्य और गन्ध धारण करते हैं तथा भक्त को इच्छानुसार एवं उससे भी अधिक वर देने वाले हैं। आपको प्रणाम है । रागी और विरागी – दोनों जिनके स्वरूप हैं, जो ध्यानपरायण, रूद्राक्ष की माला धारण करने वाले, कारण रूप में सबमें व्याप्त और कार्यरूप से पृथक-पृथक दिखायी देने वाले हैं तथा जो सम्पूर्ण जगत को छाया और धूप प्रदान करते हैं, उन भगवान को नमस्कार है । जो अघोर, घोर और घोर से भी घोरतर रूप धारण करने वाले हैं तथा जो शिव, शान्त एवं परमशान्तरूप हैं, उन भगवान शंकर को मेरा बारंबार नमस्कार है । एक पाद, अनेक नेत्र और एक मस्तकवाले आपको प्रणाम है। भक्तों की दी हुई छोटी-से-छोटी वस्तु के लिये भी लालायित रहने वाले और उसके बदले में उन्हें अपार धनराशि बाँट देने की रूचि रखने वाले आप भगवान रूद्र को नमस्कार है । जो इस विश्वका निर्माण करने वाले कारीगर, गोरवर्ण के शरीर वाले तथा सदा शान्तरूप से रहने वाले हैं, जिनकी घण्टाध्वनि शत्रुओं को भयभीत कर देती है तथा जो स्वयं ही घण्टानाद और अनाहतध्वनि के रूप में श्रवणगोचर होते हैं उन महेश्वर को प्रणाम है । जिनके मन्दिर में लगे हुए घण्टों को सहस्त्रों आदमी बजाते हैं, घण्टों की माला जिन्हें प्रिय है, जिनके प्राण ही घण्टा के समान ध्वनि करते हैं, जो गन्ध और कोलाहलरूप हैं, उन भगवान शिव को नमस्कार है । आप हूं (क्रोध), हूं (हिंकार), हूं (आकाश, सूर्य और ईश्वर) – इन सबसे परे विद्यमान शान्तस्वरूप परब्रह्मा हैं, ‘हूं’ हूं’ करना आपको प्रिय लगता है, आप ‘शान्त रहो’ ऐसा कहकर सदा सबको आश्वासन देने वाले हैं तथा पर्वतों पर और वृक्षों के नीचे निवास करते हैं। आपको प्रणाम है ।
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