महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 285 श्लोक 45-46

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पञ्चाशीत्‍यधिकद्विशततम (285) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: पञ्चाशीत्‍यधिकद्विशततम अध्याय श्लोक 45-46 का हिन्दी अनुवाद

अज्ञानियों को जिस संसार से भय बना रहता है, उससे ज्ञानियों को वह गुरूतर भय तनिक भी नहीं प्राप्‍त होता है। ज्ञानी पुरूषों में से किसी को भी अधिक या न्‍यून गति नहीं प्राप्‍त होती –वे सब समान गति के भागी होते हैं। ‘सकृद्विभातो ह्येष ब्रह्मलोक:’ इत्‍यादि श्रुति यहाँ ज्ञानियों की गति की समानता दिखाती है । ज्ञानावस्‍था में मनुष्‍य जो अनेक दोष से युक्‍त कर्म करता है और वह पहले के जो कर्म कर चुका है, उनके लिये शोक करता है। इसके सिवा अज्ञानावस्‍था में जो वह दूसरे के किये हुए अप्रिय कर्मको दोष रूप में देखता है और राग आदि दोष के कारण स्‍वयं जो दूषित कर्म करता है, वह दोनों ही प्रकार का कार्य वह ज्ञान होने के बाद नहीं करता है ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्मपर्व में पाञ्चभौतिक तत्वों का वर्णन विषयक दो सौ पचासीवाँ अध्‍याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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