महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 29 श्लोक 87-102
एकोनत्रिंश (29) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
’राजा मान्धाता बड़े धर्मात्मा और महामनस्वी थे। युद्ध में इन्द्र के समान शौर्य प्रकट करते थे। यह सारी पृथ्वी एक ही दिन मे उनके अधिकार में आ गयी थी। ’मान्धाता ने समरांगण में राजा अंगराज, मरुत्त, असित, गय तथा अंगराज बृहद्रथ को भी पराजित कर दिया। ’जिस समय युवनाश्वर पुत्र मान्धाता ने रणभूमि में राजा अंगराज के साथ युद्ध किया था, उस समय देवताओं ने ऐसा समझा कि ’उनके धुनष की टंकार से सारा आकाश ही फट पड़ा है,।’जहाँ सूर्य उदय होते हैं वहाँ से लेकर जहाँ अस्त होते हैं वहाँ तक सारा देश युवनाश्वर पुत्र मान्धता का ही राज्य कहलाता था। ’प्रजा नाथ! उन्होंने सौ अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञ करके दस योजन लंबे तथा एक योजन ऊँचे बहुत से सोने के रोहित नामक मत्स्य बनवाकर ब्राह्मणों को दान किये थे। ब्राह्ममणों के ले जाने से जो बच गये, उन्हें दूसरे लोगों ने बाँट लिया। ’सृंजय! राजा मान्धाता चारों कल्याणमय गुणों में तुम से बढे-चढे़ थे और तुम्हारे पुत्र से भी अधिक पुण्यात्मा थे। जब वे भी मारे गये, तब तुम्हारे पुत्र की क्या बिसात है? अतः तुम उसके लिये शोक न करो। ’सृजय! नहुष पुत्र राजा ययाति भी जीवित न रह सके यह हमने सुना है। उन्होंने समुद्रों सहित इस सारी पृथ्वी को जीतकर शम्यापात[१] के द्वारा पृथ्वी को नाप-नापकर यज्ञ की वेदियाँ बनायीं, जिनसे भूतल की विचित्र शोभा होने लगी। उन्हीं वेदियों पर मुख्य-मुख्य यज्ञों का अनुष्ठान करते हुए उन्होंने सारी भारत भूमि की परिक्रमा कर डाली। ’ उन्होंने एक हजार श्रौतयज्ञों और सौ वाजपेय यज्ञों का अनुष्ठान किया तथा श्रेष्ठ ब्राह्मणों को सोने के तीन पर्वत दान करके पूर्णतः संतुष्ट किया। ’नहुषपुत्र ययाति ने व्यूह-रचना युक्त आसुर युद्ध के द्वारा दैत्यों और दानवों का संहार करके यह सारी पृथ्वी अपने पुत्रों को बाँट दी थी ’उन्होंने किनारे के प्रदेशों पर अपने तीन पुत्र यदु, द्रुह्य तथा अनु को स्थापित करके मध्य भारत के राज्य पर पुरु को अभिषिक्त किया; फिर अपनी स्त्रियों के साथ वे वन में चले गये ’सृजय! वे तुम्हारी अपेक्षा चारों कल्याणमय गुणों में बढ़े हुए थे और तुम्हारे पुत्र से भी अधिक पुण्यात्मा थे। जब वे भी मर गये तो तुम्हारा पुत्र किस गिनती में है? अतः तुम उसके लिये शोक न करो ’सृंजय! हमने सुना है कि नाभाग के पुत्र अम्बरीष भी मृत्यु के अधीन हो गये थे । उन नृपश्रेष्ठ अम्बरीष को सारी प्रजा ने अपना पुण्यमय रक्षक माना था। ’ब्राह्मणों के प्रति अनुराग रखने वाले राजा अम्बरीषने यज्ञ करते समय अपने विशाल यज्ञ मण्डप में दस लाख ऐसे राजाओं को उन ब्राह्मणों की सेवा में नियुक्त किया था, जो स्वयं भी दस-दस हजार यज्ञ कर चुके थे। ’उन यज्ञ कुशल ब्राह्मणों ने नाभागपुत्र अम्बरीष की सराहना करते हुए कहा था कि ’ऐसा यज्ञ न तो पहले के राजाओं ने किया है और न भविष्य में होने वाले ही करेंगे,।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ’शम्या’ एक ऐसे काठ के डंडे को कहते हैं, जिसका निचला भाग मोटा होता है। उसे जब कोई बलवान् पुरुष उठाकर जोर से फेंके, तब जितनी दूरी पर जाकर वह गिरे, उतने भूभाग को एक ’शम्यापात’ कहते हैं। इस तरह एक-एक शम्यापात में एक -एक यश वेदी बनाते और यज्ञ करते हुए राजा ययाति आगे बढ़ते गये । इस प्रकार चलकर उन्होंने भारतभूमि की परिक्रमा की थी।