महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 339 श्लोक 114-126
एकोनचत्वारिंशदधिकत्रिशततम (339) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
भगवान् ब्रह्मा तो उन्हीं नारायण से प्रकट हुए हैं। फिर वे उन महातेजस्वी नारायण का प्रभाव कैसे नहीं जानते होंगे ?
भीष्मजी ने कहा - राजेन्द्र ! अब तक सैंकड़ों और हजारों महाकल्प बीत चुके हैं, कितने ही सर्ग और प्रलय समाप्त हो चुके हैं। सर्ग के आरम्भ में ब्रह्माजी ही प्रजावर्ग के सृष्टिकर्ता माने गये हैं। नरेश्वा ! वे अपनी उत्पत्ति के कारणभूत देव प्रवर देव प्रवर नारायण को इससे भी अधिक जानते हें। उन्हें सर्वेश्वर बौर परमात्मा समझते हैं। ब्रह्मलोक में ब्रह्माजी के अलावा जो दूसरे-दूसरे सिद्ध समुदाय निवास करते हैं, उनके लिये नारदजी ने यह वेदतुल्य पुरातन पांचतंत्र सुनाया था। पवित्र अन्तःकरण वाले उन सिद्धों के मुख से भगवान् सूर्य ने इस महात्म्य को सुना। राजन् ! सूर्य ने सुनकर अपने पीछे चलने वाले साठ हजार भावितात्मा मुनियों को इसका श्रवण कराया। लोकों में तपते हुए सुर्य के आगे चलने के लिये जिन ऋषियों की सृष्टि हुई है, उन भावितात्माओं को भी सूर्यदेव ने भगवान् की यह महिमा सुनायी थी।। तात ! सूर्यदेव का अनुसरण करने वाले उन महात्मा ऋषियों ने मेरु पर्वत पर आये हुए देवताओं को वह उत्तम महात्म्य सुनाया थ। इस प्रकार परम्परा प्रापत होकर यह उत्तम ज्ञान महाराज शान्तनु को मिला। तात ! फिर मिपता शान्तनु ने मुण्े इसका उपदेश दिया। भरतनन्दन ! पिताजी के मुख से इस प्रसंग को सुनकर मैंने अब तुमसे इसका वर्णन किया है। देवताओं, मुनियों अथवा जिन लोगों ने भी इस पुरातन ज्ञान को सुना है, वे सभी सब ओर परमात्मा का पूजन करते हैं। नरेश्वर ! इस प्रकार यह ऋषि सम्बन्धी आख्यान परम्परा से प्राप्त हुआ है। जो भगवान् वासुदेव का भक्त न हो, उसे किसी तरह भी इसका उपदेश तुम्हें नहीं देना चाहिये। नरेश्वर ! जो मनुष्य सदा इस उत्तम उपाख्यान को संनायेगा, वह भक्त मनुष्य पवित्र एवं एकाग्रचित्त होकर शीघ्र ही भगवान् विष्णु के सनातन लोक को प्रापत होगा। राजन् ! तुमने मुझसे जो अन्य सैंकड़ों उपाख्यान सुने हैं, उन सबका यह सारभाग निकालकर तुम्हारे सामने रखा गया है।
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