महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 339 श्लोक 77-90
एकोनचत्वारिंशदधिकत्रिशततम (339) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
प्रजा को निर्भय अवस्था में स्थापित करूँगा। महासागर में डूबते हुए लोकों और वेदों की भी रक्षा करूँगा।। वत्स ! मेरा दूसरा अवतार होगा कूर्म - कच्छप। उस समय में हेमकूट पर्वत के समान कच्छपरूप धारण करूँगा। द्विजश्रेष्ठ ! जब देवता अमृत के लिये श्रीरसागर का मन्थन करेंगे, तब मैं अपनी पीठ पर मन्दराचल को धारण करूँगा।। जिसके सारे अंग प्राणियों से भरे हुए हैं तथा जो समुद्र से घिरी हुई है, वही पृथ्वी जब भारी भार से दबकर घोर महासागर में निमग्न हो जायगी, उस समय मैं वाराहरूप धारण करके पुनः अपने स्थान पर ला दूंगा। उसी समय बल के घमंड में भरे हुए हिरण्याक्ष नामक दैत्य का वध कर डालूँगा । तदनन्तर देवताओं के कार्य के लिये नरसिंहरूप धारण करके यज्ञनाशक दितिनन्दन हिरण्यकशिपु की संहार कर डालूँग। विरोचन के एक बलवान् पुत्र होगा, जो महासुर बलि के नाम से विख्यात होगा। उसे देवता, असुर तथा राक्षसों सहित सम्पूर्ण लोक भी नहीं मार सकेंगे। वह इन्द्र को राज्य से भ्रष्ट कर देगा। जब वह त्रिलोकी का अपहरण कर लेगा और शचीपति इन्द्र युद्ध में पीठ दिखाकर भाग जायँगे, उस समय मैं कश्यपजी के अंश और अदिति के गर्भ से बारहवाँ आदित्य वामन बनकर प्रकट होऊँगा। द्विजश्रेष्ठ ! उस समय सब लोग मेरी स्तुति करेंगे और मैं जटाधारी ब्रह्मचारी के रूप में बलि के यज्ञमण्डल में जाकर उसके उस यज्ञ की भूरि-भूरि प्रशंसा करूँगा, जिसे सुनकर बलि बहुत प्रसन्न होगा।। जब वह कहेगा कि ‘ब्रह्मचारी ब्राह्मण ! बताओ, क्या चाहते हो ?’ तब मैं उससे महान् वर की याचना करूँगा। मैं उस महान् असुर से कहूँगा कि ‘मुण्े तीन पग भूमिमात्र दे दो’।। वह अपने मन्त्रियों के मना करने पर भी मुझ पर प्रसन्न होने के कारण वह वर मुझे दे देगा। ज्यों ही संकल्प का जल मेरे हाथ पर आयेगा, त्यों ही तीन पगों से त्रिलोकी को नापकर उसका सारा राज्य अमित तेजस्वी इन्द्र को समर्पित कर दूँगा। नारद ! इस प्रकार मैं सम्पूर्ण देवताओं को अपने-अपने स्थानों पर स्थापित कर दूँगा। साथ ही सम्पूर्ण देवताओं के लिये अवध्य श्रेष्ठ दानव बलि को भी पातालतल का निवासी बना दूँगा। फिर त्रेतायुग में भृगुकुलभूषण परशुराम के रूप में प्रकट होऊँगा और सेना तथा सवारियों से सम्पन्न क्षत्रियकुल का संहार कर डालूँगा। तदनन्तर जब त्रेता और द्वापर की सन्ध्या उपस्थित होगी, उस समय मैं जगत्पति दशरथनन्दन राम के रूप में अवतार लूँगा। त्रित नामक मुनि के साथ विश्वासघात करने के कारण एकत और द्वित - ये दो प्रजापति के पुत्र ऋषि विरूप वानरयोनि को प्राप्त होंगे। उन दोनों के वंश में जो वनवासी वानर जन्म लेंगे, वे महाबली, महापराक्रमी और इन्द्र के तुल्य पराक्रम प्रकट करने में समर्थ होंगे। ब्रह्मन् ! वे देवकार्य की सिद्धि के लिये मेरे सहायक होंगे। तदनन्तर मैं पुलस्त्यकुलांगार भयंकर राक्षसराज रावण को, जो समस्त जगत् के लिए भयावह होगाख् उसके गणों सहित मार डालूँगा। फिर द्वापर और कलि की संधि का समय बीतते-बीतते कंस का वध करने के लिये मथुरा में मेरा अवतार होगा। उस समय कंस, केशी, कालासुर, महादैत्य अरिष्टासूर, महापराक्रमी चाणूर, महाबली मुष्अिक, प्रलम्ब, धेनुकासुर तथा वृषभरूपधारी अरिष्ट को मारकर यमुना के विशाल कुण्उ में स्थित कालिया नाग को वश में करके गोकुल में इन्द्र के वर्षा करते समय गौओं की रक्षा के लिए महान् पर्वत गोवर्धन को सात दिन-रात अपने हाथ से छत्र की भाँति धारण करूँगा। ब्रह्मन् ! जब वर्षा बन्द हो जायगी, तब पर्वत के शिखर पर आरूढ़ हो मैं इन्द्र के साथ संवाद करूँगा।। वहीँ मैं बहुत से देवकण्टक दानवों को मारकर कुशस्थली को द्वारकापुरी के नाम से बसाऊँगा और उसी में निवास करूँगा।
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