महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 356 श्लोक 1-11

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षट्पञ्चाशदधिकत्रिशततम (356) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: षट्पञ्चाशदधिकत्रिशततम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद

अतिथि के वचनों से संतुष्ट होकर ब्राह्मण का उसके कथनानुसार नागराज के घर की ओर प्रस्थान

ब्राह्मण ने कहा - अतिथिदेव ! मुझ पर बड़ा भारी बोझ सा लदा हुआ था, उसे आज उतार दिया। यह बहुत बड़ा कार्य हो गया। आपकी वह बात जो मैंने सुनी है, दूसरों को पूर्ण सान्त्वना प्रदान करने वाली है। राह चलने से थके हुए बटोही को शय्या, खड़े-खड़े जिसके पैर दुख रहे हों, उसके लिए बैठने का आसन, प्यासे को पानी और भूख से पीडि़त मनुष्य को भोजन मिलने से जितना संतोष होता है, उतनी ही प्रसन्नता मुझे आपकी बात सुनकर हुई है। भोजन के समय मनोवान्छित अन्न की प्राप्ति होने से अतिथि को, समय पर अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति होने से अपने मन को, पुत्र की प्राप्ति होने से वृद्ध को तथा मन से जिसका चिन्तन हो रहा है, उसी प्रेमी मित्र का दर्शन होने से मित्र को जितना आनन्द प्राप्त होता है, आज आपने जो बात कही है, वह मुझे उतना ही आनन्द दे रही है। आपने मुझे यह उपदेश क्या दिया, अन्धे को आँख दे दी। आपके इस ज्ञानमय वचन को सुनकर मैं आकाश की ओर देखता और कर्तव्य का विचार करता हूँ। विद्वन् ! आप मुझे जैसी सलाह दे रहे हैं, अवश्य ऐसा ही करूँगा। साधो ! वे भगवान सूर्य अस्ताचल की ओर जा रहे हैं। उनकी किरणें मन्द हो रही हैं; अतः आप इस रात में मेरे साथ यहीं रहिये और सुखपूर्वक विश्राम करके भलीभाँति अपनी थकावट छूर कीजिये; फिर सवेरे अपने अभीष्ट स्थान को चले जाइयेगा।

भीष्मजी कहते हैं- शत्रुसूदन ! तदनन्तर वह अतिथि उस ब्राह्मण का आतिथ्य ग्रहण करके रातभर वहीं उस ब्राह्मण के साथ रहा। मोक्षधर्म के सम्बन्ध में बातें करते हुए उन दोनों की वह सारी रात दिन के समान ही बड़े सुख से बीत गयी। फिर सवेरा होने पर अपने कार्य की सिद्धि चाहने वाले उस ब्राह्मण द्वारा यथाशक्ति सम्मानित हो वह अतिथि चला गया। तत्पश्चात् वह धर्मात्मा ब्राह्मण अपने अभीष्ट कार्य को पूर्ण करने का निश्चय करके स्वजनों की अनुमति ले अतिथि के बताये अनुसार यथा समय नागराज के घर की ओर चल दिया। उसने अपने शुभ कार्य को सिद्ध करने का एक दृढ़ निश्चय कर लिया था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शानितपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में उन्छवृत्ति का उपाख्यान विषयक तीन सौ छप्पनवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।

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