महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 38 श्लोक 1-19

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अष्‍टात्रिंश (38) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: अष्‍टात्रिंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

नगर- प्रवेश के समय पूरवासियों तथा ब्राह्माणों द्वारा राजा युधिष्ठिर का सत्कार और उन पर आपेक्ष करने वाले चार्वाक का ब्राह्माणों द्वारा वध

वैशम्‍पायन जी कहते हैं– जनमेजय कुंती पुत्रओं के हस्तिनापुर में प्रवेश करते समय देखने के लिए दस लाख नगर निवासी सड़कों पर एकत्र हो गए । राजन जैसे चंद्रोदय होने पर महासागर उमड़ ने लगता है उसी प्रकार जिस के चौराहे को सजाए गए थे वह राजमार्ग मनुष्‍यों की उमड़ती हुई भीड़ से बडी शोभा पा रहा था । भरतनंदन सड़कों के आसपास जो रत्न विभूषित विशाल भवन थे वे स्त्रियों से भरे होने के कारण उनके भारी भार से कांपते हुए जान पड़ते थे। वीर नारियाँ लजाती हुई सी धीरे धीरे युधिष्ठिर भीमसेन अर्जुन तथा पांडुपुत्र माद्री कुमार नकुल सहदेव की प्रशंसा करने लगी। वे बोली– कल्याणी पंचाल राजकुमारी तुम धंन्‍य हो जो इन पांच महान पुरुषों की सेवा में प्रकार उपस्थित चाहती हो जिसे गोतम वंश में उत्पन्न हुई जटिला अनेक महर्षियों की सेवा करती है भाविनी तुम्‍हारे सभी पुन्‍य कर्म अघोस है और समस्त व्रत चर्या सफल है । महाराज इस प्रकार उस समय सारी स्त्रियाँ द्रुपद कुमारी कृष्णा की प्रशंसा करती थी। भारत एक दूसरी के प्रति कहे जाने वाले उनके प्रशंसा वचनों और प्रति जनित शब्दों से उस समय सारा नगर व्‍याप्‍त हो रहा था। राजन उससे सजाए सभा संपन्न राजमार्ग रुप से लांघ कर राजा युधिष्ठिर राजभवन के समीप जा पहुंचे। तदनन्‍तर मंत्री सेनापति आदि प्रकृति वर्ग के सभी लोग, नगरवासी और जनपद निवासी मनुष्य इधर उधर से आकर कानों को सुख देने वाली बाते कहने लगे। शत्रुओं का संहार करने वाले राजेंद्र बड़े सौभाग्य की बात है कि आप विजयी हो रहे हैं आपने धर्म के प्रभाव तथा बल से अपना राज्य पुन प्राप्त कर लिया यह बडे़ हर्ष का विषय है।
महाराज आप सैकडों वर्षों तक हमारे राजा बने रहें जैसे इंद्र स्वर्गलोक का पालन करते है उसी प्रकार आप भी धर्मपूर्वक अपनी प्रजा की रक्षा करें । इस प्रकार राजकुल के द्वार पर मांगलिक द्रव्‍यों द्वारा पूजित हो ब्राह्माणों के दिए हुए आशीर्वाद सब और से ग्रहण करके राजा युधिष्ठिर देवराज इंद्र के महल के समान राज भवन में प्रविष्ट करते हुए जो श्रद्धा और विजय से सम्‍पन्‍न था वहां पहुँच कर वे रथ से नीचे उतरे। राजमहल के भीतर प्रवेश करके श्रीमान नरेश ने कुल देवताओं का दर्शन किया और रत्न चंदन तथा माला आदि से सर्वथा उनकी पूजा की। इसके बाद महायस्शवी श्रीमान राजा युधिष्टर महल से बाहर निकले वहाँ उन्‍हें बहुत से ब्राह्माण खडे़ दिखाई दिये जो हाथ में मंगल द्रव लिए खडे़ थे। जैसे तारों से गिरे हुए निर्मल चंद्रमा की शोभा होती है उसी प्रकार आशीर्वाद देने की इच्छा वाले ब्राह्माणों से घिरें हुए राजा युधिष्ठिर की उस समय बडी शोभा हो रही थी। कुंती कुमार युधिष्ठिर ने धौम्‍य तथा ताउ धृतराष्‍ट्र को आगे कर के उस सभी ब्राह्माणों का विधिपूर्वक पूजन किया। राजेंद्र इन्‍होंने ने फूल, मिठाई, रत्न, बहुत से स्वर्ण, गौओं, वस्त्रों तथा उनकी इच्छा पूछ-पूछ कर बनाए हुए नाना प्रकार के मनोवांछित पदार्थों द्वारा उन सब का यथोचित सत्कार किया। भरत इसके बाद पुण्‍याहवा वाचन का गंभीर घोष होने लगा जो आकाश को स्‍तब्‍ध सा किये देता था वह पवित्र शब्द कानों को सुख देने वाला तथा सुहृदों को प्रसन्‍नता प्रदान करने वाला था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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