महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 3 श्लोक 20-33

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

तृतीय (3) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 20-33 का हिन्दी अनुवाद

एक दिन मैंने भृगु की प्राण प्यारी पत्नी का बल पूर्वक अपहरण कर लिया, इससे महर्षि ने शाप दे दिया और मैं कीड़ा होकर इस पृथ्वी पर गिर पड़ा। आपके पूर्व पितामह भृगुजी ने शाप देते समय कुपित होकर मुझसे इस प्रकार कहा- ’ओ पापी! तू मूत्र और लार आदि खाने वाल कीडा होकर नरक में पडे़गा’। तब मैंने उनसे कहा-- ’ब्रह्मन ! इस शाप का अन्त भी होना चाहिये।’ यह सुनकर भृगुजी बोले- ’भृगुवंशी परशुराम से इस शाप का अन्त होगा’। वहीं मैं इस गति को प्राप्त हुआ था, जहां कभी कुशल नहीं बीता। साधो! आपका समागम होने से मेरा इस पाप-योनि से उद्धार हो गया। परशुराम जी से ऐसा कहकर वह महान असुर उन्हें प्रणाम करके चला गया।

इसके बाद परशुराम जी ने कर्ण से क्रोध पूर्वक कहा- ’ओ मूर्ख! ऐसा भारी दुःख ब्राह्मण कदापि नहीं सह सकता। तेरा धैर्य तो क्षत्रिय के समान है। तू स्वेच्छा से ही सत्य बता, कौन है?’ कर्ण परशुराम जी के शाप के भय से डर गया। अतः उन्हें प्रसन्न करने की चेष्टा करते हुये कहा- ’भार्गव! आप यह जान लें कि मैं ब्राह्मण और क्षत्रिय से भिन्न सूत जाति में पैदा हुआ हूँ। भूमण्डल के मनुष्य मुझे धापुत्र कर्ण कहते हैं। ब्राह्मण भृगुनन्दन! मैंने अस्त्र के लोभ से ऐसा किया है, आप मुझ पर कृपा करें। इसमें संदेह नहीं कि वेद और विधा का दान करने वाला शक्तिशाली गुरू पिता के ही तुल्य है; इसलिये मैंने आपके निकट अपना गोत्र भार्गव बताया है। यह सुन कर भृगुश्रेष्ठ परशुराम जी इतने रोष में भर गये, मानो वे उसे दग्ध कर डालेंगे। उधर कर्ण हाथ जोड़ दीन भाव से काँपता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा। तब वे उससे बोले- ’मूढ! तूने ब्रह्मास्त्र के लोभ से झूठ बोल कर यहाँ मेरे साथ मिथ्याचार (कपटपूर्ण व्यवहार) किया है, इसलिये जब तक तू संग्राम में अपने समान योद्धा के साथ नहीं भिड़ेगा और तेरी मृत्यु का समय निकट नहीं आ जाएगा, तभी तक तुझे इस ब्रह्मास्त्र का स्मरण बना रहेगा। जो ब्राह्मण नहीं है, उसके हृदय में ब्रह्मास्त्र कभी स्थिर नहीं रह सकता, अब तू यहाँ से चला जा। तुझ मिथ्यावादी के लिये यहाँ स्थान नहीं है, परंतु मेरे आशीर्वाद से कोई भी क्षत्रिय युद्ध में तेरी समानता नहीं करेगा’। परशुराम जी के ऐसा कहने पर कर्ण उन्हें न्याय पूर्वक प्रणाम करके वहाँ से लौट आया और दुर्योधन के पास पहुँच कर बोला- ’मैंने सब अस्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर लिया’।

इस प्रकार श्री महाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासन पर्व में कर्ण को अस्त्र की प्राप्ति नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।