महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 53 श्लोक 21-28
त्रिपञ्चाशत्तम (53) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
दारूक ने वसुदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण के बलाहक मेघपुष्प, शैब्य और सुग्रीव नामक घोडों को हाँ। राजन् ! उस समय दारूक द्वारा हाँके गये श्रीकृष्ण के वे घोडे अपनी टापों के अग्रभाग से पृथ्वी पर चिन्ह बनाते हुए बडे वेग से दौडे। उन अश्वों का बल और वेग महान था। वे आकाश को पीते हुए से उड चले, और बात की बात में सम्पूर्ण धर्म के क्षेत्रभूत कुरूक्षेत्र में जा पहुँचे। तदनन्तर वे सब लोग उस स्थान पर गये जहाँ पर प्रभावशाली भीष्मजी बाणशय्या पर सो रहे थे। जैसे देवताओं से घिरे हुए ब्रह्माजी शोभा पाते है, उसी प्रकार महर्षियों के साथ भीष्मजी सुशोभित हो रहे थे। तत्पश्चात् रथ से उतरकर भगवान श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, भीमसेन, गाण्डीवधारी अर्जुन, नकुल, सहदेव तथा सात्यकि ने अपने अपने दाहिने हाथों को उठाकर ऋषियों के प्रति सम्मान का भाव प्रदर्शित किया। नक्षत्रों से घिरे हुए चन्द्रमा की भाँति भाइयों से घिरे हुए राजा युधिष्ठिर गंगानन्दन भीष्म के समीप गये, मानो देवराज इन्द्र ब्रह्माजी के निकट पधारे हों। शर-शय्या पर सोये हुए महाबाहु भीष्मजी वैसे ही दिखायी दे रहे थे, मानो सूर्यदेव आकाश से पृथ्वी पर गिर पडे हो। युधिष्ठिर ने उसी अवस्था में उनका दर्शन किया। उस समय वे भय से काँप उठे थे।
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