महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 72 श्लोक 18-25

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द्विसप्ततितम (72) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: द्विसप्ततितम अध्याय: श्लोक 18-25 का हिन्दी अनुवाद

इस प्रकार राजा के आश्रय में रहकर सारी प्रजा सदाचार परायण, अपने-अपने धर्म में तत्पर और सब ओर से निर्भय हो जाती है। राजा के द्धारा भलिभाँति सुरक्षित हुए मनुष्य राज्य में जिस धर्म आचरण करते है, उसका एक चैथाई भाग राजा भी प्राप्त कर लेता है। देवता, मनुष्य, पितर गन्धर्व नाग और राक्षस-ये सबके सब यज्ञ का आश्रय लेकर जीवन-निर्वाह करते हैं; परन्तु जहाँ कोई राजा नहीं है, उस राज्य में यज्ञ नही होता है। देवता और पितर भी इस मत्र्यलोक से ही दिये गये यज्ञ और श्राद्ध से जीवन यापन करते है। अतः इस धर्म का योगक्षेम राजा पर ही अलम्बित है। जब गर्मी पडती है, उस समय मनुष्य छाया, में जल में और वायु में सुख का अनुभव करता है। इसी प्रकार सर्दी पडने पर अग्रि और सूर्य के ताप से तथा कपडा ओडने से उसे सुख मिलता है ( परन्तु अराजकताका भय उपस्थित होन पर मनुष्य को कहीं किसी वस्तु भी सुख प्राप्त नही होता है)। साधारण अवस्था में प्रत्येेक मनुष्य का मन शब्द, स्पर्श, रुप, रस और गन्ध में आनन्द का मन अनुभव करता है; परन्तु भयभीत मनुष्य को उन सभी भोगों में कोई सुख नही मिलता है़ इसलिए जो अभयदान करने वाला है। राजा इन्द्र है, राजा यमराज है तथा राजा ही धर्मराज है। राजा अनेक रूप धारण करता है और राजा ने ही इस सम्पूर्ण जगत को धारण कर रखा है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्वं के अन्तर्गत राजधर्मांनुशासनपर्वं में बहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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