महाभारत श्रवण विधि श्लोक 22-43

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महाभारत श्रवण विधि:

महाभारत: श्रवण विधि: श्लोक 22-43 का हिन्दी अनुवाद

तिरसठ अक्षरों का उनके आठों स्‍थानों से ठीक-ठीक उच्‍चारण करे। कथा सुनाते समय वाचक के लिये स्‍वस्‍थ्‍य और एकाग्र चित्‍त होना आवश्‍यक है। उसके लिये आसन ऐसा होना चाहिये जिस पर वह सुखपूर्वक बैठ सके। अन्‍तर्यामी नारायण स्‍वरूप भगवान श्रीकृष्‍ण, (उनके नित्‍य सखा) नर स्‍वरूप नरश्रेष्‍ठ अर्जुन, उनकी लीलाओं का संकलन करने वाले) महर्षि वेदव्‍यास को नमस्‍कार करके जय (महाभारत)- का पाठ करना चाहिये। राजन ! भरतनन्‍दन ! नियमपरायण पवित्र श्रोता ऐसे वाचक से महाभारत की कथा सुनकर श्रवण का पूरा-पूरा फल पाता है। जो मनुष्‍य प्रथम पारण के समय ब्राह्मणों को अभीष्‍ट वस्‍तुएं देकर तृप्‍त करता है। वह अग्निष्‍टोम यज्ञ का फल पाता है। उसे अप्‍सराओं से भरा हुआ विमान प्राप्‍त होता है और वह प्रसन्‍नता पूर्वक एकाग्रचित्‍त हो देवताओं के साथ स्‍वर्गलोक में जाता है। जो मनुष्‍य दूसरा पारण पूरा करता है उसे अति रात्र यज्ञ का फल मिलता है। वह सर्वरत्‍न मय दिव्‍य विमान पर आरूढ़ है। वह दिव्‍य माला और दिव्‍य वस्‍त्र धारण करता, दिव्‍य चन्‍दन से चर्चित एवं दिव्‍य वस्‍त्र धारण करता, दिव्‍य चन्‍दन से चर्चित एवं दिव्‍य सुगन्‍ध से वासित होता है। तीसरा पराण पूरा करने पर है। चौथे पारण में वाजपेय-यज्ञ का और पांचवें में उससे दूना फल प्राप्‍त होता है। वह पुरूष उदयकाल के सूर्य तथा प्रज्‍वलित अग्नि के समान तेजस्‍वी विमानपर आरूढ़ हो देवताओं के साथ स्‍वर्ग लोक में जाता है और वहां इन्‍द्र भवन में दस हजार वर्षों तक आनन्‍द भोगता है। छठे पारण में इससे दूना और सातवें में तिगुना फल मिलता है। वह मनुष्‍य अप्‍सराओं से भरे हुए और इच्‍छानुसार चलने वाले, कैलाश सिखर की भांति उज्‍ज्‍वल, वैदूर्यमणि की वेदियों से विभूषित, नाना प्रकार से सुसज्जित तथा मणियों और मूंगों से अलंकृत विमान पर बैठकर दूसरे सूर्य की भांति सम्‍पूर्ण लोकों में विचरता है। आठवें पारण में मनुष्‍य राजसूय यज्ञ का फल पाता है। वह मन के समान वेगशाली और चन्‍द्रमा की किरणों के समान रंग वाले श्‍वेत घोडों से जुते हुए चन्‍द्रोदय तुल्‍य रमणीय विमान पर आरूढ़ हो होता है । चन्‍द्रमा से भी अधिक कमनीय मुखों द्वारा सुशोभित होने वाली सुन्‍दरी दिव्‍यांगनाएं उसकी सेवा में रहती हैं तथा सुर सुन्‍दरियों के अंक में सुख से सोया हुआ वह पुरूष उन्‍हीं की मेखलाओं के खन-खन शब्‍दों और नूपुरों की मधुर झनकारों से जगाया जाता है। भारत ! नवां पारण पूर्ण होने पर श्रोता को यज्ञों के राजा अश्‍वमेध का फल प्राप्‍त होता है। वह सोने के खंभो और छज्‍जो से सुशोभित, वैदूर्यमणि की बनी हुई वेदियों से विभूषित, चारों ओर से जाम्‍बून दमय दिव्‍य वातायनों से अलंकृ, स्‍वर्गवासी गन्‍धर्वों एवं अप्‍सराओं से सेवित दिव्‍य विमान पर आरूढ हो अपनी उत्‍कृष्‍ट शोभा से प्रकाशित होता हुआ स्‍वर्ग में दूसरे देवता की भांति देवातओं के साथ आनन्‍द भोगता है। उसके अंगों में दिव्‍य माला एवं दिव्‍य वस्‍त्र शोभा पाते हैं तथा वह दिव्‍य चन्‍दन से चर्चित होता है। दसवां पारण पूरा होने पर ब्राह्माणों को प्रणाम करने के पश्‍चात श्रोता को पुरण्‍यनि के तन विमान अनायास ही प्राप्‍त हो जाता है। उसमें छोटी-छोटी घंटियों से युक्‍त झालरें लगी होती है और उनसे मधुर ध्‍वनि फैलती रहती है। बहुत-सी ध्‍वजा-पताकाऍं उस विमान की शोभा बढाती हैं ।उनके जगह-जगह रत्‍नमय चबुतरे बने होते हैं। वैदुर्य-मणिका बना हुआ फाटक लगा होता है । सब ओर से सोने की जाली द्वारा वह विमान घिरा होता हैं उसके छज्‍जों के नीचे मुँगे जडे़ होते हैं। संगीत कुशल गन्‍धर्वों और अप्‍सराओं से उस विमान की शोभा और बढ़ जाती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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