महाभारत सभा पर्व अध्याय 15 श्लोक 16-25
पञ्चदश (15) अध्याय: सभा पर्व (राजसूयारम्भ पर्व)
इसी प्रकार राजा मरूत्त अपनी समृद्धि के प्रभाव से सम्राट् बने थे । अब तक उन पाँच सम्राटों का ही नाम हम सुनते आ रहे हैं । युधिष्ठिर ! वे मान्धाता आदि एक-एक गुणों से ही सम्राट हो सके थे; परंतु आप तो सम्पूर्ण रूप से सम्राट पद प्राप्त करना चाहते हैं । साम्राज्य-प्राप्ति के जो पाँच गुण शत्रुविजय, प्रजापालन, तपः शक्ति, धन-समृद्धि और उत्तम नीति हैं, उन सबसे आप सम्पन्न हैं। परंतु भरत श्रेष्ठ ! आप के मार्ग में बृहद्रथ का पुत्र जरासंध बाधक है, यह आपको जान लेना चाहिये । क्षत्रियों के जो एक सौ कुल हैं, वे कभी उस का अनुसरण नहीं करते, अतः वह बल से ही अपना साम्राज्य स्थापित कर रहा है। जो रत्नों के अधिपति हैं, ऐसे राजा लोग (धन देकर) जरासंध की उपासना करते हैं, परंतु वह उस से भी संतुष्ट नहीं होता । अपनी विवकेशून्यता के कारण अन्याय का आश्रय ले उन पर अत्याचार ही करता है। आजकल वह प्रधान पुरूष बनकर मूर्धाभिषिक्त राजा को बलपूर्वक बंदी बना लेता है । जिन का विधिपूर्वक राज्य पर अभिषेक हुआ है, ऐसे पुरूषों में से कहीं किसी एक को भी हम ने ऐसा नहीं देखा, जिसे उस ने बलि का भाग न बना लिया हो - कैद में न डाल रक्खा हो। इस प्रकार जरासंध ने लगभग सौ राजकुलों के राजाओं में से कुछ को छोड़कर सब को वश में कर लिया है । कुन्ती नन्दन ! कोई अत्यन्त दुर्बल राजा उस से भिड़ने का साहस कैसे करेगा। भरतश्रेष्ठ ! रूद्र देवता को बलि देने के लिये जल छिड़क कर एवं मार्जन करके शुद्ध किये हुए पशुओं की भाँति जो पशुपति के मन्दिर में कैद हैं, उन राजाओं को अब अपने जीवन में क्या प्रीति रह गयी है ? षत्रिय जब युद्ध में अस्त्र-शस्त्रों द्वारा मारा जाता है, तब यह उसका सत्कार है; अतः हम लोग जरासंध को द्वन्द्व-युद्ध में मार डालें। राजन् ! जरासंध ने सौ में से छियासी (प्रतिशत) राजाओं को तो कैद कर लिया है, केवल चौदह (प्रतिशत) बाकी हैं। उनको भी बंदी बनाने के पश्चात् वह क्रूर कर्म में प्रवृत्त होगा। जो उसके इस कर्म में विघ्न डालेगा, वह उज्ज्वल यश का भागी होगा तथा जो जरासंध को जीत लेगा, वह निश्चय ही सम्राट् होगा।
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