महाभारत सभा पर्व अध्याय 22 भाग-4
द्वाविंश (22) अध्याय: सभा पर्व (जरासंधवध पर्व)
देवदूत कह रहा था- ‘कंस ! आज तू जिस देवकी को रथ पर बिठाकर लिये जा रहा है, उसका आठवाँ गर्भ तेरी मृत्यु का कारण होगा’ ।। यह आकाशवाणी सुनते ही अत्यन्त खोटी बुद्धिवाले राजा कंस ने म्यान से चमचमाती हुई तलवार खींच ली और देवकी का सिर काट लेने का विचार किया। राजन् उस समय परम बुद्धिमान् वसुदेव जी हँसते हुए क्रोध के वशीभूत हुए कंस को सान्त्वना दे उसकी अनुनय विनय करने लगे- ।। ‘पृथ्वी पते ! प्रायः सभी धर्मों में नारी को अवध्य बताया गया है । क्या तुम इस निर्बल एवं निरपराध नारी को सहसा मार डालोगे ? ‘राजन् ! इससे जो तुम्हें भय प्राप्त होने वाला है, उसका तो तुम निवाराण कर सकते हो । तुम्हें इसकी रक्षा करनी चाहिये औैर मुझे इसकी प्राणरक्षा के लिये जो शर्त निश्चत हो, उसका पालन करना चाहिये ।। ‘राजन् इसके आठवें गर्भ को तुम पैदा होते ही नष्ट कर देना । इस प्रकार तुम पर आयी हुई विपत्ति टल सकती है’ ।। भरतनन्दन ! वसुदेव जी के ऐसा कहने पर शूरसेन देश के राजा कंस ने उनकी बात मान ली । तदनन्तर देवकी के गर्भ से सूर्य के समान तेजस्वी अनेक कुमार क्रमशः उत्पन्न हुए । मथुरा नरेश कंस ने जन्म लेते ही उन सब को मार डालता था ।। तदनन्तर देवकी के उदर में सातवें गर्भ के रूप में बलदेव का आगमन हुआ । राजन् ! यमराज ने यमसम्बन्धिनी माया के द्वारा उस अनुपम गर्भ को देवकी के उदर से निकालकर रोहिणी की कुक्षि में स्थापित कर दिया। आकर्षण होने के कारण उस बालक का नाम संकर्षण हुआ । बल में प्रधान होने से उसका नाम बलदेव हुआ। तत्पश्चात् देवकी के उदर में आठवें गर्भ के रूप में साक्षात् भगवान् मधुसूदन का आविर्भाव हुआ । राजा कंस ने बड़े यत्न से उस गर्भ की रक्षा की ।। तदनन्तर प्रसवकाल आने पर सात्वत वंशी वसुदेव पर कड़ी नजर रखने के लिये कंस ने उग्र स्वभाव वाले अपने क्रूरकर्मा मन्त्री को नियुक्त किया । परंतु बालस्वरूप श्रीकृष्ण के प्रभाव से रक्षकों के निद्रा से मोहित हो जाने पर वहाँ से उठकर महातेजरूवी वसुदेव जी बालक के साथ ब्रज में चले गये । नवजात वासुदेव को मथुरा से हटाकर पिता वसुदेव ने उसके बदले किसी गोप की पुत्री को लाकर कंस को भेंट कर दिया ।। देवदूत के कहे हुए पूर्वोक्त शब्द का स्मरण करके उसके भय से छूटने की इच्छा रखने वाले कंस ने उस कन्या को भी पृथ्वी पर दे मारा । परंतु वह कन्या उसके हाथ से छूटकर हँसती और आर्य शब्द उच्चारण करती हुई वहाँ से चली गयी । इसीलिये उसका नाम ‘आर्या’ हुआ ।। परम बुद्धिमान् वसुदेव ने इस प्रकार राजा कंस को चकमा देकर गोकुल में अपने महात्मा पुत्र वासुदेव का पालन कराया। वासुदेव भी पानी में कमल की भाँति गोपों में रहकर बड़े हुए । काठ में छिपी हुई अग्नि की भाँति वे अज्ञात भाव से वहाँ रहने लगे । कंस को उनका पता न चला। मथुरा नरेश कंस उन सब गोपों को बहुत सताया करता था । इधर महाबाहु श्रीकृष्ण बड़े होकर तेज और बल से सम्पन्न हो गये।
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