महाभारत सभा पर्व अध्याय 45 श्लोक 63-68
पन्चचत्वारिंश (45) अध्याय: सभा पर्व (शिशुपालवध पर्व)
सात्यकि और कृतवर्मा शीघ्रता पूर्वक उस रथ पर आरूढ़ हो श्रीहरि की सेवा के लिये चँवर डुलाने लगे। देवेश्वर बलदेवजी तथा सहस्त्रों यदुवंशी धर्मपुत्र युधिष्ठिर से पूजित हो राजा की भाँति वहाँ से विदा हुए। तदनन्तर सोन के श्रेष्ठ सिंहासन को छोड़कर भाइयों सहित श्रीमान् धर्मराज युधिष्ठिर पैदल ही महाबली भगवान वासुदेव के पीछे पीदे चलने लगे। तब कमललोचन भगवान श्रीहरि ने दो घड़ी तक अपने श्रेष्ठ रथ को रोककर कुन्ती कुमार युधिष्ठिर से कहा-‘राजन्! आप सदा सावधान रहकर प्रजाजनों के पालन में लगे रहें। जैसे सब प्राणी मेघ को, पक्षी महान् वृक्ष को और सम्पूर्ण देवता इन्द्र को अपने जीवन का आधार मानकर उनका आश्रय लेते हैं, उसी प्रकार सभी बन्धु बान्धव जीवन निर्वाह के लिये आपका आश्रय लें।’ श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर आपस में इस प्रकार बातें करके एक दूसरे की आज्ञा ले अपने अपने स्थान को चल दिये। राजन्! यदुवंश शिरोमणि श्रीकृष्ण के द्वारका चले जाने पर भी राजा दुर्योंधन तथा सुबलपुत्र शकुनि ये दोनों नरश्रेष्ठ उस दिव्य सभा भवन में ही रहे।
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