महाभारत सभा पर्व अध्याय 48 श्लोक 19-23
अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
शकुनि बोला- राजन्! कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर को जूए का खेल बहुत प्रिय है, किंतु वे उसे खेलना नहीं जातने। यदि महाराज युधिष्ठिर को द्यूतक्रीडा के लिये बुलाया जाय तो वे पीछे नहीं हट सकेंगे। मैं जूआ खेलने में बहुत निपुण हूँ। इस कला में मेरी समानता करने वाला पृथ्वी पर दूसरा कोई नही हैं। कवेल यहीं नहीं, तीनों लोकों में मेरे जैसा द्यूतिविद्या का जानकार नहीं है। अत: कुरुनन्दन! तुम द्यूतक्रीड़ा के लिये युधिष्ठिर को बुलाओं। नरश्रेष्ठ! मैं पासा फेंकने में कुशल हूँ, अत: युधिष्ठिर के राज्य तथा देदीप्यमान राजलक्ष्मी को तुम्हारे लिये अवश्य प्राप्त कर दूँगा, इसमे संशय नहीं है। दुर्योधन! तुम ये सारी बातें पिताजी से कहो। उनकी आज्ञा मिल जाने पर नि:संदेह पाण्डवों को जीत लूँगा। दुर्योधन ने कहा- सुबलनन्दन! आप ही कुरुकुल के प्रधान महाराज धृतराष्ट्र से इन सब बातों को यथोचित रूप से कहिये। मैं स्वयं कुछ नही कह सकूँगा।
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