महाभारत सभा पर्व अध्याय 5 श्लोक 47-58
पञ्चम (5) अध्याय: सभा पर्व (लोकपालसभाख्यान पर्व)
क्या तुम्हारा सेनापति हर्ष और उत्साह से सम्पन्न, शूर-वीर, बुद्धिमान्, धैर्यवान्, पवित्र, कुलीन, स्वामिभक्त तथा अपने कार्य में कुशल है ? तुम्हारी सेना के मुख्य-मुख्य दलपति सब प्रकार के युद्धों में चतुर, धृष्ट (निर्भय), निष्कपट और पराक्रमी हैं न ? तुम उनका यथोचित सत्कार एवं सम्मान करते हो न ? अपनी सेना के लिये यथोचित भोजन और वेतन ठीक समय पर दे देते हो न ? जो उन्हें दिया जाना चाहिये, उस में कमी या विलम्ब तो नहीं कर देते ? भोजन और वेतन में अधिक विलम्ब होने पर भृत्यगण अपने स्वामी पर कुपित हो जाते हैं और उनका वह कोप महान् अनर्थ का कारण बताया गया है । क्या उत्तम कुल में उत्पन्न मन्त्री आदि सभी प्रधान अधिक सभी प्रधान अधिकारी तुम से प्रेम रखते हैं ? क्या वे युद्ध में तुम्हारे हित के लिये अपने प्राणों तक का त्याग करने को सदा तैयार रहते हैं ?
तुम्हारे कर्मचारियों में कोई ऐसा तो नहीं है, जो अपनी इच्छा के अनुसार चलने वाला और तुम्हारे शासन का उल्लंघन करने वाला हो तथा युद्ध के सारे साधनों एवं कार्यों को अकेला ही अपनी रूचि के अनुसार चला रहा हो ? (तुम्हारे यहाँ काम करने वाला) कोई पुरूष अपने पुरूषार्थ से जब किसी कार्य को अच्छे ढंग से सम्पन्न करता है, तब वह आप से अधिक सम्मान अथवा अधिक भत्ता और वेतन पाता है न ? क्या तुम विद्या से विनयशील एवं ज्ञाननिपुण मनुष्यों को उनके गुणों के अनुसार यथा योग्य धन आदि देकर उनका सम्मान करते हो ? भरत श्रेष्ठ ! जो लोग तुम्हारे हित के लिये सहर्ष मृत्यु का वरण कर लेते हैं अथवा भारी संकट में पड़ जाते हैं, उनके बाल-बच्चों की रक्षा तुम करते हो न ?
कुन्ती नन्दन ! जो भय से अथवा अपनी धन-सम्पत्ति का नाश होने से तुम्हारी शरण में आया हो या युद्ध में तुम से परास्त हो गया हो, ऐसे शत्रु का तुम पुत्र के समान पालन करते हो या नहीं ? पृथ्वीपते ! क्या समस्त भूमण्डल की प्रजा तुम्हें ही समदर्शी एवं माता-पिता के समान विश्वसनीय मानती है ? भरत कुलभूषण ! क्या तुम अपने शत्रु को (स्त्री-द्यूत आदि) दुव्र्यसनों में फँसा हुआ सुनकर उस के त्रिविध बल (मन्त्र, कोष एवं भृत्य-बल अथवा प्रभु शक्ति, मन्त्र शक्ति एवं उत्साह शक्ति) पर विचार करके यदि वह दुर्बल हो तो उस के ऊपर बड़े वेग से आक्रमण कर देते हो ?
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