महाभारत सभा पर्व अध्याय 69 श्लोक 16-21

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एकोनसप्ततितम (69) अध्‍याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: एकोनसप्ततितम अध्याय: श्लोक 16-21 का हिन्दी अनुवाद

मैं तो धर्म का स्‍वरूप सूक्ष्‍म और गहन होने के कारण तथा धर्मनिर्णय के कार्य के अत्‍यन्‍त गुरूतर होने से तुम्‍हारे इस प्रश्‍न का निश्चित रूप से यथार्थ विवेचन नहीं कर सकता। अवश्‍य ही बहुत शीघ्र इस कुल का नाश होने वाला है, क्‍यों कि समस्‍त कौरव लोभ और मोह के वशीभूत हो गये है । कल्‍याणि ! तुम जिनकी पत्‍नी हो, वे पाण्‍डव हमारे उत्तम कुल में उत्‍पन्‍न हैं और भारी से-भारी संकट में पड़कर भी धर्म के मार्ग से विचलित नहीं होते हैं। पांचाल राजकुमारी ! तुम्‍हारा यह आचार-व्‍यवहार तुम्‍हारे योग्‍य ही है; क्‍योंकि भारी संकट में पड़कर भी तुम धर्म की ओर ही देख रही हो। ये द्रोणाचार्य आदि वृद्ध एवं धर्मज्ञ पुरूष भी सिर लट-काये शून्‍य शरीर से इस प्रकार बैठे हैं; मानो निष्‍प्राण हो गये हों । मेरी राय यह है कि इस प्रश्‍न का निर्णय करने के लिये धर्मराज युधिष्ठिर ही सबसे प्रामाणिक व्‍यक्ति हैं । तुम जीती गयी हो या नहीं ? यह बात स्‍वयं इन्‍हें बतलानी चाहिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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