महाभारत सभा पर्व अध्याय 77 श्लोक 15-29

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सप्‍तसप्‍ततितम (77) अध्‍याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: सप्‍तसप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 15-29 का हिन्दी अनुवाद

यह सब सुनकर भीमसेन को बड़ा क्रोध हुआ । जैसे हिमालय की गुफा में रहने वाला सिंह गीदड़ के पास जाय, उसी प्रकार वे सहसा दु:शासन ने पास जा पहुँचे और रोष पूर्वक उस रोककर जारे-जोर से फटकारते हुए बोले। भीमसेन ने कहा—क्रूर एवं नीच दु:शाससन ! तू पापी मनुष्‍यों द्वारा प्रयुक्‍त होने वाली ओछी बातें बक रहा है । अरे ! तू अपने बाहुबल से नहीं, शकुनि ने छल विद्या के प्रभाव से आज राजओं की मण्‍डली में अपने मुँह से अपनी बड़ाई कर रहा है। जैसे यहाँ तू अपने वचन रूपी बाणों से हमारे मर्मस्‍थानों में अत्‍यन्‍त पीड़ा पहुँचा रहा है, उसी प्रकार जब युद्ध में मैं तेरा हृदय विदीर्ण करने लगूँगा, उस समय तेरी कही हुई इन बातों की याद दिलाऊँगा। जो लोग क्रोध और लोभ के वशीभूत हो तुम्‍हारे रक्षक बनकर पीछे-पीछे चलते हैं, उन्‍हें उनके सम्‍बन्धियों सहित यमलोक भेज दूँगा। वैशम्‍पायनजी कहते हैं—जनमेजय ! मृगचर्म धारण किये भीमसेन को ऐसी बातें करते देख निर्लज दु:शासन कौरवों के बीच में उनकी हँसी उड़ाते हुए नाचने लगा और ‘ओ बैल ! ओ बैल’ कहकर उन्‍हें पुकारने लगा। उस समय भीम का मार्ग धर्मराज युधिष्ठिर ने रोक रक्‍खा था (अन्‍यथा वे दु:शासन को जीता न छोड़ते्)। भीमसेन बोले—ओ नृशंस दु:शासन ! तेरे ही मुख से ऐसी कठोर बातें निकल सकती हैं, तेरे सिवा दूसरा कौन है, जो छल-कपट से धन पाकर इस तरह आप ही अपनी प्रशंसा करेगा। मेरी बात सुन ले । यह कुन्‍तीपुत्र भीमसेन यदि युद्ध में तेरी छाती फाड़कर तेरा रक्‍त न पीये तो इसे पुण्‍यलोकों की प्राप्ति न हो। मैं तुझसे सच्‍ची बात कह रहा हूँ, शीघ्र ही यह समय आने वाला है, जब कि समस्‍त धनुर्धरों के देखते-देखते मैं युद्ध में धृतराष्‍ट्र सभी पुत्रों का वध करके प्राप्‍त करूँगा। वैशम्‍पायनजी कहते हैं—जनमेजय ! जब पाण्‍डव-लोग सभा-भवन से निकले, उस समय मन्‍दबुद्धि राजा दुर्योधन हर्ष में भरकर सिंह के समान मस्‍तानी चाल से चलने-वाले भीमसेन की खिल्‍ली उड़ाते हुए उनकी चालकी नकल करने लगा। यह देख भीमसेन ने अपने आधे शरीर को पीछे की ओर मोड़कर कहा—‘ओ मूढ़ ! केवल दु:शासन के रक्‍तपान द्वारा ही मेरा कर्तव्‍य पूरा नहीं हो जाता है । तुझे भी सम्‍बन्धियों-सहित शीघ्र ही यमलोक भेजकर तेरे इस परिहास की याद दिलाते हुए इसका समुचित उत्तर दूँगा’। इस प्रकार अपना अपमान होता देख बलवान् एवं मानी भीमसेन क्रोध को किसी प्रकार रोककर राजा युधिष्ठिर के पीछे कौरव सभा से निकलते हुए इस प्रकार बोले। भीमसेन ने कहा—मैं दुर्योधन का वध करूँगा, अर्जुन कर्ण का संहार करेंगे और इस जुआरी शकुनि ने सहदेव मार डालेंगे। साथ ही इस भरी सभा में मैं पुन: एक बहुत बड़ी बात कर रहा हूँ । मेरा यह विश्‍वास है कि देवता लोग मेरी यह बात सत्‍य कर दिखायेंगे । जब हम कौरव और पाण्‍डवों में युद्ध होगा, उस समय इस पापी दुर्योधन को मैं गदा से मार गिराऊँगा तथा रणभूमि में पडे़ हुए इस पापी के मस्‍तक को पैर से ठुकराऊँगा। और यह जो केवल बात बनाने में बहादुर क्रूरस्‍वभाव–वाला दुरात्‍मा दु:शासन है, इसकी छाती का खून उसी प्रकार पी लूँगा, जैसे सिंह किसी मृग का रक्‍त पान करता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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