महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 18 श्लोक 20-26
अष्टादश (18) अध्याय: सौप्तिक पर्व
तब देवता यज्ञ को साथ लेकर धनुषरहित देवश्रेष्ठ महादेव जी की शरण में गये । उस समय भगवान् शिव ने उन सब पर कृपा की। इसके बाद प्रसन्न हुए भगवान् ने अपने क्रोध को समुद्र में स्थापित कर दिया। प्रभो ! वह क्रोध वडवानल बनकर निरन्तर उसके जल को सोखता रहता है। पाण्डुनन्दन ! फिर भगवान् शिव ने भग को आँखें, सविता को दोनों बाँहें, पूषा को दाँत और देवताओं को यज्ञ प्रदान किये। तदनन्तर यह सारा जगत् पुन: सुस्थिर हो गया । देवताओं ने सारे हविष्यों में से महादेव जी के लिये भाग नियत किया। राजन् ! भगवान् शंकर के कुपित होने पर वह पुन: सुस्थिर हो गया । वे ही शक्तिशाली भगवान् शिव अश्वत्थामा पर प्रसन्न हो गये थे। इसीलिये उसने आपके सभी महारथी पुत्रों तथा पाञ्चालराज का अनुसरण करने वाले अन्य बहुत से शूरवीरों का वध किया है। अत: इस बात को आप मन में न लावें । अश्वत्थामा ने यह कार्य अपने बल से नहीं, महोदव जी की कृपा से प्रसन्न किया है । अब आप आगे जो कुछ करना हो, वही कीजिये।