महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 8 श्लोक 152-159
अष्टम (8) अध्याय: सौप्तिक पर्व
राजा धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय ! अश्वत्थामा तो मेरे पुत्र को विजय दिलाने का दृढ निश्चय कर चुका था। फिर उस महारथी वीर ने पहले ही ऐसा महान पराक्रम क्यों नहीं किया ? । जब दुर्योधन मार डाला गया, तब उस महामनस्वी द्रोणपुत्र ने ऐसा नीच कर्म क्यों किया ? यह सब मुझे बताओ । संजय ने कहा- कुरूनन्दन ! अश्वत्थामा को पाण्डव, श्रीकृष्ण और सात्यकि से सदा भय बना रहता था; इसीलिये पहले उसने ऐसा नहीं किया। इस समय कुन्ती के पुत्र, बुद्धिमान श्रीकृष्ण तथा सात्यकि के दूर चले जाने से अश्वत्थामा ने अपना यह कार्य सिद्ध कर लिया । उन पाण्डव आदि के समक्ष कौन उन्हें मार सकता था ? साक्षात देवराज इन्द्र भी उस दशा में उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते थ । प्रभो ! नरेश्वर ! उस रात्रि में सब लोगों के सो जाने पर यह इस प्रकार की घटना घटित हुई । उस समय पाण्डवों के लिये महान विनाशकारी जन संहार करके वे तीनों महारथी जब परस्पर मिल, तब आपस में कहने लगे -बड़े सौभाग्य से यह कार्य सिद्ध हुआ है । तदनन्तर उन दोनों का अभिनन्दन स्वीकार करके द्रोण पुत्र ने उन्हें हृदय से लगाया और बड़े हर्ष से यह महत्वपूर्ण उत्तम वचन मुँह से निकाला- । सारे पांचाल, द्रौपदी के सभी पुत्र, सोमकवंशी क्षत्रिय तथा मत्स्य देश के अवशिष्ठ सैनिक ये सभी मेरे हाथ से मारे गये । इस समय हम कृतकृत्य हो गये। अब हमें शीघ्र वहीं चलना चाहिये । यदि हमारे राजा दुर्योधन जीवित हो तो हम उन्हें भी यह समाचार कह सुनावें ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत सौप्तिक पर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंग में पाञ्चाल आदि का वधविषयक आठवां अध्याय पूरा हुआ ।
« पीछे | आगे » |