महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 8 श्लोक 58-77
अष्टम (8) अध्याय: सौप्तिक पर्व
शातानीक ने जब चक्र चला दिया, तब ब्राह्मण अश्वत्थामा ने भी उस पर गहरा आघात किया । इससे व्याकुल होकर पथ्वी पर गिर पड़ा। इतने ही में अश्वत्थामा ने उसका सिर काट लिया । अब श्रुतकर्मा परिघ लेकर अश्वत्थामा की ओर दौड़ा। उसने उसके ढालयुक्त बायें हाथ में भारी चोट पहूँचायी । अश्वत्थामा ने अपनी तेज तलवार से श्रुतकर्मा के मुख पर आघात किया। वह चोट खाकर बेहोश हो पृथ्वी पर गिर पड़ा। उस समय उसका मुख विकृत हो गया था । वह कोलाहल सुनकर वीर महारथी श्रुतकीर्ति अश्वत्थामा के पास आकर उसके ऊपर बाणों की वर्षा करने लगा । उसकी बाण-वर्षा को ढाल से रोककर अश्वत्थामा ने उसके कुण्डलमण्डित तेजस्वी मस्तक को घड़से अलग कर दिया । तदननतर समस्त प्रभद्रकों सहित बलवान भीष्महन्ता शिखण्डी नाना प्रकार के अस्त्रों द्वारा अश्वत्थामा पर सब ओर से प्रहार करने लगा तथा एक दूसरे बाण से उसने उसकी दोनों भौंहों के बीच में आघात किया । तब महाबली द्रोण पुत्र ने क्रोध के आवेश में आकर शिखण्डी के पास जा कर अपनी तलवार से उसके दो टुकड़े कर डाले । क्रोध से भरे हुए शत्रुसंतापी अश्वत्थामा ने इस प्रकार शिखण्डी का वध करके समस्त प्रभद्रकों पर बड़े वेग से धावा किया। साथ ही, राजा विराट की जो सेना शेष थी, उस पर भी जोर से चढाई कर दी। उस महाबली वीर ने द्रुपद के पुत्रों, पौत्रों और सुह्यदों को ढूँढ-ढूँढकर उनका घोर संहार मचा दिया । तलवार के पैंतरों में कुशल द्रोणपुत्र ने दूसरे-दूसरे पुरूषों के भी निकट जाकर तलवार से ही उनके टुकड़े-टुकड़े कर डाले।उस समय पाण्डव-पक्ष के योद्धाओं ने मूर्तिमती कालरात्रि को देखा, जिसके शरीर का रंग काला था, मुख और नेत्र लाल थे। वह लाल फूलों की माला पहने और लाल चन्दन लगाये हुए थी। उसने लाल रंग की ही साड़ी पहन रखी थी। वह अपने ढंग की अकेली थी और हाथ में पाशलिये हुए थी। उसकी सखियों का समुदाय भी उसके साथ था। वह गीत गाती हुई खड़ी थी और भयंकर पाशों द्वारा मनुष्यों, घोड़ों एवं हाथियों को बांधकर लिये जाती थी । माननीय नरेश ! मुख्य-मुख्य योद्धा अन्य रात्रियों में भी सपने में उस कालरात्रि को देखते थे। राजन ! वह सदा नाना प्रकार के केशरहित प्रेतों को अपने पाशों में बांधकर लिये जाती दिखायी देती थी, इसी प्रकार हथियार डालकर सोये हुए महाराथियों को भी लिये जाती हुई स्वप्न में दृष्टिगोचर होती थी। वे योद्धा सबका संहार करते हुए द्रोणकुमार को भी सदा सपनों में देखा करते थे । जबसे कौरव-पाण्डव सेनाओं का संग्राम आरम्भ हुआ था, तभी से वे योद्धा कन्यारूपिणी कालरात्रि को और कालरूपधारी अश्वत्थामा को भी देखा करते थे। पहले से ही दैव के मारे हुए उन वीरों का द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने पीछे वध किया था। वह अश्वत्थामा भयानक स्वर से गर्जना करके समस्त प्राणियों को भयभीत कर रहा था । वे दैवपीड़ित वीरगण पूर्वकाल के देखे हुए सपने को याद करके ऐसा मानने लगे कि यह वही स्वप्न इस रूप में सत्य हो रहा है । तदनन्तर अश्वत्थामा के उस सिंहनाद से पाण्डवों के शिविर में सैकड़ों और हजारों धनुर्धर वीर जाग उठे । उस समय कालप्रेरित यमराज के समान उसने किसी के पैर काट लिये, किसी की कमर टूक-टूक कर दी और किन्हीं की पसलियों में तलवार भोंककर उन्हें चीर डाला ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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