महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 18 श्लोक 19-28
अष्टादश (18) अध्याय: स्त्रीपर्व (जलप्रदानिक पर्व )
शत्रुघाती शूरवीर भीमसेन ने युद्ध में जिसे मार गिराया तथा जिसके सारे अंगों का रक्त पी लिया, वही यह दुशासन यहां सो रहा है । माधव। देखो, ध्रुतक्रीड़ा के समय पाये हुए कलेशों को स्मरण करके द्रौपदी से प्रेरित हुए भीमसेन ने मेरे इस पुत्र को गदा से माल डाला है । जनार्दन। इसने अपने भाई और कर्ण का प्रिय करने की इच्छा से सभा में जुएं से जीती गयी द्रौपदी के प्रति कहा था कि पान्चालि। तू नकुल सहदेव तथा अर्जुन के साथ ही हमारी दासी हो गई; अतः शीघ्र ही हमारे घरों में प्रवेश कर । श्रीकृष्ण। उस समय मैं राजा दुर्योधन से बोली- बेटा। शकुनी मौत के फन्दे में फंसा हुआ है। तुम इसका साथ छोड़ दो। पुत्र। तुम अपने इस खोटी बुद्वि वाले मामा को कलह प्रिय समझो और शीघ्र ही इसका परित्याग करके पाण्डवों के साथ संधि कर लो। दुर्बुद्वे। तुम नहीं जानते कि भीमसेन कितने अमर्षशील हैं। तभी जलती लकड़ी से हाथी को मारने के समान तुम अपने तीखे वाग्बाणों से उन्हें पीड़ा दे रहे हो । इस प्रकार एकान्त में मैंने उन सब को डांटा था। श्रीकृष्ण। उन्हीं बागबाणों को याद करके क्रोधी भीमसेन ने मेरे पुत्रों पर उसी प्रकार क्रोधरूपी विष छोड़ा है, जैसे सर्प गाय वैल को डस कर उनमें अपने विष का संचार कर देता है । सिंह के मारे हुए विशाल हाथी के समान भीमसेन का मारा हुआ यह दुशासन दोनों विशाल हाथ फैलाये रणभूमि में पड़ा हुआ है । अत्यन्त अमर्ष में भरे हुए भीमसेन ने युद्धस्थल में क्रुद्व होकर जो दुशासन का रक्त पी लिया, यह बड़ा भयानक कर्म किया है ।
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