मुहम्मद कुली कुतुबशाह
मुहम्मद कुली कुतुबशाह
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 59-60 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | रजिया सज्जाद जहीर;परमश्वेरीलाल गुप्त |
कुतुबशाह, मुहम्मद कुली (१५८०-१६११ ई.)। गोलकुंडा के कुतुबशाही वंश का छठा शासक, जो अपने पिता इब्राहीम कुतुबशाह की मृत्यु पर गद्दी पर बैठे। उन्होंने बीजापुर के आदिलशाही सुल्तानों से चली आ रही वंशगत शत्रुता को दूर करने की चेष्टा की और सुल्तान इब्राहीम आदिलशाह के साथ अपनी बहन ममलकुजमाँ का विवाह कर इसमें सफलता प्राप्त की। इस प्रकार राजनीतिक शांति स्थापित कर उन्होंने अपने राज्य की सांस्कृतिक उन्नति की ओर ध्यान दिया और अनेक विद्यालय, मसजिद और भवनों का निर्माण कराया और अपनी प्रेयसी भागमती नामक नर्तकी की स्मृति के लिए भागनगर नाम से नगर बसाया जो पीछे हैदराबाद के नाम से प्रख्यात हुआ।
वे साहित्यानुरागी तथा स्वयं कवि थे। उनके दरबार में दूर-दूर से साहित्यकार और कवि आते रहते थे। उन्होंने दखिनी हिंदी में कविताएँ की हैं जिनके आधार पर उनकी उर्दू साहित्य के आरंभकालिक प्रमुख कवियों में गणना की जाती है और उन्हें प्रथम दीवान लेखक होने का गौरव प्राप्त है। कहा जाता है कि उन्होंने ५० हजार से अधिक शेरों की रचना की थी। उनके कुल्लियात में उर्दू काव्य के सभी रूप-गजल, कुसीदा, रु बाई, मर्सिया, मसनवी आदि देखने को मिलते हैं। उनकी इस रचना में तत्कालीन भारतीय संस्कृति का सजीव अंकन हुआ है। उसमें वसंत, शरद, वर्षा, ईद के वर्णन के अतिरिक्त उसने अपने दरबार की विविध जातियों, धर्मों और प्रदेशों की नारियों का अद्भुत चित्रण किया है। उनकी रचनाओं पर हिंदी काव्य शैली का पूरा प्रभाव है। हिंदी के अनेक शब्द, मुहावरे, विचार उनकी रचनाओं में प्रयुक्त हुए हैं।
वर्णनात्मक काव्य पर उनका अद्भुत अधिकार था ही, उन्होंने फारसी काव्यों का दखिनी हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत कर अपनी अनोखी काव्यप्रतिभा का परिचय दिया है। उन्होंने हाफिज की अनेक गजलों का अनुवाद प्रस्तुत किया है। इस प्रतिभावान कवि शासक की ४८ वर्ष की आयु में ही मृत्यु हो गई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ