विद्युत्कर्षण
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विद्युत्कर्षण
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 11 |
पृष्ठ संख्या | 2 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
लेखक | राम कुमार गर्ग |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1969 ईसवी |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
विद्युत्कर्षण (अंग्रेज़ी: Electric Traction) रेल, ट्राम अथवा अन्य किसी प्रकार की गाड़ी को खींचने के लिए, विद्युत् शक्ति का उपयोग करने की विधि को विद्युत् कर्षण कहते हैं। इस क्षेत्र में, वाष्प इंजन तथा अन्य दूसरे प्रकार के इंजन ही सामान्य रूप से प्रयोग किए जाते रहे हैं। विद्युत् शक्ति का कर्षण के लिए प्रयोग सापेक्षतया नवीन है और मुख्यत: पिछले 60 वर्षों में ही विकसत हुआ है। परंतु अपनी विशेष सुविधाओं के कारण, इसका प्रयोग बढ़ता जा रहा है और धीरे-धीरे अन्य साधनों का स्थान यह अब लेता जा रहा है। विद्युत्कर्षण में नियंत्रण की सुविधा तथा गाड़ियों का अधिक वेग से संचालन हो सकने के कारण उतने ही समय में अधिक यातायात की उपलब्धि हो सकती है। साथ ही कोयला, धुआँ अथवा हानिकारक गैसों के न होने से अधिक स्वच्छता रहती है और नगर की घनी आबादीवाले भागों में भी इसका प्रयोग संभव है।
विद्युत्-कर्षण-तंत्र में विद्युत् मोटरों द्वारा चालित लोकोमोटिव[१]गाड़ी को खींचता है। रेल की लाइन के साथ ऊपर में एक विद्युत् लाइन होती हैं, जिससे चालक गाड़ी एक चलनशील बुरुश द्वारा संपर्क करती है। रेल की लाइन, निगेटिव लाइन का काम देती है और शून्य वोल्टता पर होती है। इसके लिये इसे अच्छी प्रकार भूमित[२]भी कर दिया जाता है। इस प्रकार इसे छूने से किसी प्रकार की दुर्घटना की संभावना नहीं रहती। ऊपरी लाइन की बोल्टता, प्रयोग की जानेवाली मोटरों एवं संभरणतंत्र पर निर्भर करती है। पुराने तंत्रों में 600 वोल्ट की वोल्टता साधारणतया प्रयोग की जाती है यद्यपि 1,500 वोल्ट एवं 3,000 वोल्ट भी अब सामान्य हो गए हैं। पिछले कुछ वर्षों में, उच्च वोल्टता तंत्रों की रचना की गई है और उच्च वोल्टता पर प्रवर्तित होनेवाले एकप्रावस्था [३] प्रत्यावर्ती धारातंत्र का प्रयोग किया गया है और अब सामान्यत: इन्हीं का प्रयोग होने लगा है। ये सामान्यत: 16,000 अथवा 25,000 वोल्ट की वेल्टता पर प्रवर्तित होते हैं।
विद्युत्कर्षण के लिए प्रयोग होनेवाली मोटरों को आरंभ में अधिकतम कर्षण ऐंठन [४] का उपलब्ध करना आवश्यक होता है, क्योंकि किसी भी गाड़ी को खींचने के लिए आरंभ में बहुत शक्ति की आवश्यकता होती है, परंतु जैसे-जैसे वेग बढ़ता जाता है, कम शक्ति की आवश्यकता होती है। आरंभ में अधिक ऐंठन से त्वरण[५]शीघ्रता से उत्पन्न किया जा सकता है। इन मोटरों को अल्प समय के लिए अतिभार [६]सँभालने की क्षमता भी होनी चाहिए। इन लक्षणों के अनुसार दिष्ट धारा श्रेणी मोटर[७]सबसे अधिक उपयुक्त होती है तथा सामान्य रूप से व्यवहार में आती हैं, परंतु दिष्ट धारा मोटरें सामान्यत: उच्च वोल्टता पर प्रवर्तन के लिए उपयुक्त नहीं होतीं और इस कारण दि.धा. कर्षणतंत्र सामान्यत: 3,000 वोल्ट तक के ही होते हैं दि. धा. तंत्रों की अपेक्षा प्र.धा. तंत्र संभरण अधिक समान्य हेने के कारण, कर्षण में भी इनका प्रयोग करने के प्रयत्न बराबर किए जाते रहे हैं। कुछ विशिष्ट प्ररूप की दि.धा. मोटरें, लक्षण में दि.धा. श्रेणी मोटर के समान होती हैं। इनकी संरचना पिछले 50 वर्षों से ही शोध का सामान्य विषय रही है और अब ऐसी एकप्रावस्था दि.धा. मोटरें बनाई गई हैं जिनके लक्षण दि.धा. श्रेणी मोटरों के समान कर्षण के लिए उपयुक्त हों। इन प्र.धा. मोटरों का भार उसी शक्ति की दि.धा. मोटरों से काफी कम होती है और ये सपेक्षतया सस्ती होती हैं। इनका सबसे बड़ा लाभ इनके उच्च वोल्टता पर प्रवर्तन में है। इस कारण उच्च वोल्टता तंत्र प्रयोग करना संभव है, जिससे कर्षणतंत्र में पर्याप्त बचत की जा सकती है। परंतु ये मोटरें सामान्य शक्ति आवृत्ति[८]पर उपयुक्त लक्षण नहीं दे पातीं। इनका प्रवर्तन कम आवृत्ति पर अधिक संतोषप्रद होता है। अत: कर्षण के लिए सामान्यत:, अथवा 25 चक्रीय आवृत्ति का प्रयोग किया जाता है। इस कारण इन्हें सामान्य संभरणतंत्रों से नहीं संभरण किया जा सकता है। एकप्रावस्था तंत्र होने के कारण उपकेंद्र[९] पर प्रावस्था संतुलन [१०]की समस्या भी रहती है। परंतु इन समस्याओं के उपयुक्त समाधान हो चुके हैं और अब 16,000 और 25,000 वोल्ट के, श्अथवा 25 चक्रीय आवृत्ति के, एकप्रावस्था वाले प्र.धा. तंत्र कर्षण के लिए सामान्य रूप से प्रयोग किए जाते हैं। कहीं-कहीं दोनों तंत्रों की विशेषताओं का लाभ उठाने के लिए, संभरण लाइन [११] उच्च वोल्टता प्र.धा. की होती है तथा ऋजुकारी द्वारा उसे रूपांतरित कर दि.धा. मोटरों का प्रयोग किया जाता है।
प्र.धा. कर्षणतंत्रों में भी, सामान्य त्रिप्रावस्था संभरण से एक प्रावस्था लाइन लेकर, प्रावस्था परिवर्तन[१२] द्वारा उसे त्रिप्रावस्था तंत्र में बदलकर, त्रिप्रावस्था प्रेरण मोटर [१३]प्रयोग करना भी संभव है। इस प्रकार सामान्य मोटरों का प्रयोग किया जा सकता है और प्रावस्था संतुलन की समस्या का भी सहज समाधान हो सकता है। वस्तुत: हंगरी में ऐसे ही कर्षणतंत्र का प्रयोग किया गया है, परंतु त्रिप्रावस्था प्रेरण मोटरों के लक्षण कर्षण के लिए इतने उपयुक्त न होने के कारण, यह तंत्र सामान्य प्रयोग में नहीं आ सका है।
विद्युत्कर्षण के क्षेत्र में यद्यपि ब्रिटेन का महत्वपूर्ण स्थान है, तथापि प्र.धा. कर्षणतंत्र प्रयोग करने में हंगरी अग्रगण्य रहा है। यहाँ इसका प्रयोग सबसे पहले 1932 ई. में किया गया। इसके बाद जर्मनी में 1936 ई. में इस तंत्र का प्रयोग किया गया। फ्रांस में इसे 1950 ई. में अपनाया और 25,000 वोल्ट के एक प्रावस्था प्र.धा. कर्षणतंत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत में भी मुख्य रेल लाइनों के विद्युतीकरण में भी यही तंत्र प्रयोग किया जा रहा है। उच्च वोल्टता पर प्रवर्तन करने के कारण, केंद्रों की संख्या कम हो जाती है और वे अधिक दूर हो सकते हैं। इससे भी तंत्र में काफी बचत हो सकती है। उच्च वोल्टता के प्रयोग से वैसे ही तार में तथा दूसरी सज्जाओं में काफी बचत होती है। अतएव मुख्य लाइनों पर एकप्रावस्था उच्च वोल्टता प्र.धा. तंत्र का प्रयोग सामान्य हो गया है।
विद्युत्कर्षण के लिए प्रयोग होनेवाली मोटरों की नियंत्रण व्यवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी के कारण विद्युत्कर्षण तंत्र इतने सामान्य हो सके हैं। दि.धा. श्रेणी मोटरों के लिए ड्रम नियंत्रक[१४]प्रयोग किए जाते हैं, जिनमें आरंभण, वेगनियंत्रण तथा ब्रेकन [१५]सभी का प्रावधान किया जाता है। साथ ही सुविधापूर्वक इच्छानुसार गाड़ी को आगे तथा पीछे चलाया जा सकता है। एक प्रावस्था प्र.धा. मोटरों में भी जो नियंत्रक प्रयोग किए जाते हैं, वे भी इन सब प्रयोजनों का प्रावधान करते हैं। नियंत्रकों में ही संरक्षण युक्तियाँ[१६] भी लगी होती हैं, जो मोटर को अतिभार [१७]तथा अतिचाल[१८]से बचा सकें। ऊपरी लाइन से संपर्क करनेवाला संस्पर्श बुरुश[१९]भी इस प्रकार के संरचक द्वारा व्यवस्थित होता है कि बुरुश तथा संस्पर्श तार में समान दाब रहे और वेग तथा अन्य किसी कारण से संस्पर्श प्रतिरोध [२०] में विचरण न उत्पन्न हो। सुरंगों एवं अधिक यातायात स्थलों पर, ऊपरी लाइन का प्रयोग करना संभव नहीं हो पाता। अतएव, तार के स्थान पर एक दूसरी संस्पर्श रेल का प्रयोग किया जाता है जो भूमि के नीचे रहती है। स्पष्टतया अधिक व्यय के कारण सभी स्थानों पर इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता। कहीं-कहीं संपूर्ण विद्युत् तंत्र के स्थान पर डीज़ल विद्युत् लोकोमोटिव [२१] का प्रयोग किया जाता है, जिसमें डीज़ल इंजन द्वारा विद्युत् उत्पन्न करके विद्युत् कर्षण का लाभ उठाया जाता है।
विद्युत् कर्षण हमारे युग का एक अत्यंत महत्वपूर्ण साधन है, जिसका उपयोग अधिकाधिक बढ़ता जा रहा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ locomotive
- ↑ earthed
- ↑ single phase
- ↑ torque
- ↑ acceleration
- ↑ overload
- ↑ D.C. series motor
- ↑ power frequency
- ↑ substation
- ↑ phase balancing
- ↑ supply line
- ↑ phase conversion
- ↑ three phase induction motor
- ↑ drum controller
- ↑ braking
- ↑ protective devices
- ↑ overload
- ↑ overspeed
- ↑ contact brush
- ↑ contact resistance
- ↑ diesel electric locomotive