विलियम लायड गैरिसन
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
विलियम लायड गैरिसन
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 1 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | पद्मा उपाध्याय |
गैरिसन, विलियम लायड (1805 से 1879) अमरीकी दासताविरोधी आंदोलन का नेता। जन्म न्यूबरीपोर्ट (मसाचूसेट्स) 10 दिसंबर, 1805 को। पिता की जब मृत्यु हुई तब गैरिसन बच्चा ही था। कम उम्र में ही उसने हेराल्ड में लिखना शुरू किया जिसका अनेक बार वह स्थानापन्न संपादक भी हुआ। शीघ्र ही बोस्टन में वह नेशनल फिलैंथ्रापिस्ट का संपादक हुआ जिस पत्र की स्थापना मद्यपान के विरोध में हुई थी। जान क्विंसी ऐडम्स को संयुक्त राज्य अमरीका का राष्ट्रपति बनाने के लिये 1828 में गैरिसन ने बेनिंग्टन में 'जनरल ऑव द टाइम्स' नामक पत्र छापना शुरू किया। बेंजामिन लैंडी के दासताविरोधी व्याख्यानों से प्रभावित होकर गैरिसन ने दासता के विरुद्ध अमरीका में युद्ध ठान दिया। उसका कहना था कि नीग्रो दासों को सभी प्रकार के नागरिक अधिकार मिलने चाहिएँ और उसने दासों के पक्ष में आंदोलन आरंभ कर दासस्वामियों से झगड़ा मोल ले लिया। इस संबध में उसे जेल का मुँह भी देखना पड़ा। 1831 में उस पर भारी मुकदमा चला और 5000 डालर का इनाम उसे पकड़ने के लिये घोषित हुआ। उसी साल लिबरेटर नाम का जो पत्र गैरिसन ने निकालना शुरू किया, उसका नारा था - 'संसार हमारा देश है, मानव जाति हमारी हमवतन है।' उस पत्र में सिद्धांत रूप से संपादक ने जो ऐलान किया वह आज अपने सिद्धांत में निष्ठा रखनेवालों का नैतिक शपथ बन गया है। 'मैं दृढ़ प्रतिज्ञ हूँ', 'मैं अपनी बात पर दृढ़ रहूँगा', 'मैं कभी क्षमा नहीं करूँगा', 'मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूँगा', और 'अपनी बात सुनाकर रहूँगा'।
गैरिसन ने जब इंग्लैंड की यात्रा की तब वहां के दासप्रथावलंबियों में खलबली मच गई। फिर भी उसने वहाँ दासविरोधी समाज की स्थापना की। उसके अमरीका लौटने पर प्रेसिडेंट अब्राहम लिंकन ने उसकी दासविरोधी सेवाओं को सराहा और दासप्रथा का अमरीका में अंत किया। दूसरी बार जब गैरिसन 1846 में और तीसरी बार 1867 में इंग्लैंड गया तब उसका वहाँ बड़ा स्वागत और सम्मान हुआ। वह न्यूयार्क में 74 साल की उम्र में 24 मई, 1879 को मरा तथा बोस्टन में दफनाया गया।