वृषभ युद्ध
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वृषभ युद्ध
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पुस्तक नाम | 'हिन्दी विश्वकोश' खण्ड 11 |
पृष्ठ संख्या | 148 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
लेखक | भगवान दास वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन 1969 |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
वृषभ युद्ध स्पेन वासियों का राष्ट्रीय खेल है। इस युद्ध में जो साँड़ भाग लेते हैं, वे पालतू नहीं होते, वरन एक विशेष जंगली जाति के होते हैं। वृषभ युद्ध ग्रीक और रोमन साम्राज्य में भी प्रचलित थे, किंतु इनमें पालतू साँड़ों द्वारा प्रदर्शन होता था। बाद में इन्हें बंद कर दिया गया, किंतु स्पेन और मेक्सिको में ये राष्ट्रीय रूप में अभी भी प्रचलित हैं।
युद्ध की व्यवस्था
इन युद्धों की व्यवस्था झंडों और वंदनवारों से सजाए हुए, एक गोल क्रीड़ांगण में, जिसे 'प्लाज़ा ड टोरोस'[१] कहते हैं, की जाती है। अध्यक्ष के इशारा करने पर, साँड़ आँगन में छोड़ दिया जाता है, जहाँ उसे भाले से लैस घुड़सवार, जिन्हें पिकाडोर[२] कहते हैं, तैयार मिलते हैं। ये बर्छे से छेदकर साँड को क्रोधित करने और इधर उधर दौड़ाकर उसे थकाने की चेष्टा करते हैं। यदि वृषभ साहसी हुआ, तो घुड़सवारों को बड़ी सतर्कता से अपना बचाव करना पड़ता है। यदि साँड़ आक्रमण के बजाय स्वयं भागने का उपक्रम करता है, तो दर्शक उसका मजाक उड़ाते हैं और उसे तुरंत मार डाला जाता है।
पुरुष तथ सांड़ युद्ध
साहसी वृषभ जब किसी घोड़े को घायल कर देता है या पिकाडोर गिर जाता है, तो चूलो[३], अर्थात् दो फुट लंबी फलदार बर्छियाँ लिए पैदल, उसे घेर और छेदकर, अपनी ओर आकर्षित करते हैं। जब साँड़ कुछ थक जाता है, तो पिकाडोर हट जाते हैं और उनका स्थान चूलो ले लेते हैं, जो साँड़ को छेड़ने, थकाने, घायल और क्रोधित करने का क्रम जारी रखते हैं। अंत में मैटाडोर[४]या एस्पाडा[५], अर्थात् एक असिकलाप्रवीण पुरुष, अकेला साँड़ का सामना करता है। क्रोध से अंधे साँड़ की प्रत्येक झपट पर वह अपने लाल लबादे को उसके आगे कर, स्वयं एक ओर हट जाता है। जब अपने साहस और फुर्ती के यथेष्ट चमत्कार वह दर्शकों को दिखाकर प्रसन्न कर चुकता है, तो साँड़ के अंतिम आक्रमण के समय अपने को बचाकर तलवार से उसके कंधों के मध्य, मेरुदंड को छेदकर साँड़ का अंत कर देता है। तब झंडियों और घंटियों से सज्जित, सुंदर खच्चरों का एक दल अखाड़े में आता है और खून में लिपटे साँड़ के मृत शरीर को बाहर घसीट ले जाता है। इस क्रूर खेल का अंत एक साँड की मृत्यु से ही नहीं होता, वरन् प्रत्येक प्रदर्शन में कई साँड अखाड़े में उतारे जाते हैं।