श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 41 श्लोक 50-52
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दशम स्कन्ध: एकचत्वारिंशोऽध्यायः (41) (पूर्वार्ध)
जब ग्वालबाल और बलरामजी के साथ भगवान श्रीकृष्ण उन सुन्दर-सुन्दर मालाओं से अलंकृत हो चुके, तब उन वरदायक प्रभु ने प्रसन्न होकर विनीत और शरणागत सुदामा को श्रेष्ठ वर दिये । सुदामा माली ने उनसे यही वर माँगा कि ‘प्रभो! आप ही समस्त प्राणियों के आत्मा हैं। सर्वस्वरुप आपके चरणों में मेरी अविचल भक्ति हो। आपके भक्तों से मेरा सौहार्द, मत्री का सम्बन्ध हो और समस्त प्राणियों के प्रति अहैतुक दया का भाव बना रहे’ ।
भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा को उसके माँगे हुए वर तो दिये ही—ऐसी लक्ष्मी भी दी जो वंशपरम्परा के साथ-साथ बढ़ती जाय; और साथ ही बल, आयु, कीर्ति तथा कान्ति का भी वरदान दिया। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण बलरामजी के साथ वहाँ से बिदा हुए ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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