श्रीमद्भागवत महापुराण द्वादश स्कन्ध अध्याय 5 श्लोक 10-13
द्वादश स्कन्ध: पञ्चमोऽध्यायः (5)
देखो, तूम मृत्युओं की भी मृत्यु हो! तुम स्वयं ईश्वर हो। ब्राम्हण के शाप से प्रेरित तक्षक तुम्हें भस्म न कर सकेगा। अजी, तक्षक की तो बात ही क्या, स्वयं मृत्यु और मृत्युओं का समूह भी तुम्हारे पास तक न फटक सकेंगे । तुम इस प्रकार अनुसंधान—चिन्तन करो कि ‘मैं ही सर्वाधिष्ठान परब्रम्ह हूँ। सर्वाधिष्ठान ब्रम्ह मैं ही हूँ।’ इस प्रकार तुम अपने-आपको अपने वास्तविक एकरस अनन्त अखण्ड स्वरुप में स्थित कर लो । उस समय अपनी विषैली जीभ लपलपाता हुआ, अपने होठों के कोने चाटता हुआ तक्षक आये और अपने विषपूर्ण मुखों से तुम्हारे पैरों में डस ले—कोई परवा नहीं। तुम अपने आत्मस्वरुप में स्थित होकर इस शरीर को—और तो क्या, सारे विश्व को भी अपने से पृथक् न देखोगे । आत्मस्वरूप बेटा परीक्षित्! तुमने विश्वात्मा भगवान की लीला के सम्बन्ध में जो प्रश्न किया था, उसका उत्तर मैंने दे दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो ?
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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