श्रीमद्भागवत महापुराण प्रथम स्कन्ध अध्याय 5 श्लोक 37-40
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प्रथम स्कन्धः पञ्चम अध्यायः(5)
‘प्रभो! आप भगवान श्रीवासुदेव को नमस्कार है। हम आपका ध्यान करते हैं। प्रदुम्न, अनिरुद्ध और संकर्षण को भी नमस्कार है’। इस प्रकार जो पुरुष चतुर्व्यूह रूपी भगवन्मूर्तियों के नाम द्वारा प्राकृत मूर्ति रहित अप्राकृत मन्त्रमूर्ति भगवान यज्ञपरुष का पूजन करता है, उसी का ज्ञान पूर्ण एवं यथार्थ है। ब्रम्हन्! जब मैंने भगवान की आज्ञा का इस प्रकार पालन किया, तब इस बात को जानकर भगवान श्रीकृष्ण ने मुझे आत्मज्ञान, ऐश्वर्य और अपनी भावरुपा प्रेमाभक्ति का दान किया । व्यासजी! आपका ज्ञान पूर्ण है; आप भगवान की ही कीर्ति का—उनकी प्रेममयी लीला का वर्णन कीजिये। उसी से बड़े-बड़े ज्ञानियों की भी जिज्ञासा पूर्ण होती है। जो लोग दुःखों के द्वारा बार-बार रौंदे जा रहे हैं, उनके दुःख की शान्ति इसी से हो सकती है और कोई उपाय नहीं है ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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