संयुक्त राज्य अमेरिका
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संयुक्त राज्य अमेरिका
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 194 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री कैलासचन्द्र शर्मा |
अमरीका, संयुक्त राज्य वर्तमान संयुक्त राज्य अमरीका (यूनाइटेड स्टेट), की सृष्टि दो कारणों से हुई। यूरोपवासियों का 17वीं शताब्दी से इस द्वीप में अपने विचार, वाणी तथा संस्कृति सहित आना, और यहाँ रहकर उनके यूरोपीय स्वरूप का बदल जाना। उत्तरी अमरीका की खोज 15वीं-16वीं शताब्दी में हुई थीं, पर लगभग शताधिक वर्ष बाद आगंतुकों ने इस देश में प्रवेश किया ओर उसे अपना लिया। धार्मिक स्वतंत्रता का अपहरण, इंग्लैंड में सम्राट् ओर पार्लियामेंट के बीच संघर्ष, औपनिवेशिक व्यापार का आकर्षण, सोना प्राप्त करने का लोभ तथा बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए नया स्थान ढूँढ़ने की अभिलाषा ने लोगों को नए देश में बसने के लिए प्रेरित किया। 1606 ई. में तीन छोटे अंग्रेजी जहाज 120 व्यक्तियों को लेकर कैप्टेन न्यूपोर्ट के नेतृत्व में अमरीका के लिए चले। चार महीने की सामुद्रिक यात्रा के पश्चात् इनमें से 104 व्यक्ति सकुशल जेम्स नदी के मुहाने पर उतरे। वर्जीनिया कंपनी ने 5,649 व्यक्तेिं भेजे जिनमें से 1624 ई. तक कोई 1,095 व्यक्ति जीवित थे। इस कंपनी के बंद हो जाने पर ये उपनिवेश सम्राट् के अधिकार में चले गए और वही इनका गवर्नर नियुक्त करने लगा। वर्जीनिया उपनिवेश में तंबाकू की खेती होने लगी जो क्रमश: उसके विकास का मुख्य साधन बनी। इसके उत्तर में 1632 ई. में मेरीलैंड नामक दूसरा राजकीय उपनिवेश स्थापित किया गया, जिसका पट्टा सम्राट् ने जार्ज कल्वर्ट या लार्ड बाल्टीमोर को दिया। इस वंश का इसपर कई पीढ़ियों तक अधिकार रहा। यहाँ रोमन कैथेलिकों को धार्मिक स्वतंत्रता थी। यह उपनिवेश भी तंबाकू की खेती के लिए प्रसिद्ध हो गया।
औपनिवेशिक युग : धनप्राप्ति की इच्छा, धार्मिक स्वतंत्रता की अभिलाषा, राजनीतिक अत्याचार से मुक्त होने का संकल्प और नए साहसिक कार्य के प्रलोभन ने यूरोप के और देशों से भी लोगों को यहाँ आने के लिए बाध्य किया। 1624 ई. में डचों ने न्यू नेदरलैंड्स का उपनिवेश बसाया, पर चालीस वर्ष बाद इसपर अंग्रेजों का आधिकार हो गया और उन्होंने इसका नाम न्यूयार्क रखा। 16वीं-17वीं शताब्दियों के धार्मिक क्रांतिकाल में प्यूरिटन नामक एक दल उठ खड़ा हुआ जो अंग्रेजी ईसाई धर्म में सुधारों का आंदोलन करने लगा। इसका एक जत्था इंग्लैंड छोड़कर हालैंड में जा बसा। इनमें से कुछ लोग 1620 ई. में इंग्लैंड होते हुए अमरीका जा पहुँचे। वहाँ इन्होंने न्यू प्लीमथ की पिलग्रिम कालोनी बसाई। चार्ल्स प्रथम के समय भी जिन पादरियों का अनुकरण करते हुए अमरीका आए। उन्होंने 1630 ई. में मसाच्यूसेट्स उपनिवेश की स्थापना की। पेनसिलवेनिया और नार्थ केरोलाइना के अनेक आगुतंक जर्मनी और आयरलैंड से अधिक धार्मिक स्वतंत्रता और आर्थिक उन्नति की आशा में इधर आए थे।
17वीं शताब्दी के प्रथम तीन चौथाई भाग में जो विदेशी अमरीका में आकर बसे उनमें अंग्रेजी की संख्या बहुत अधिक थी। कुछ डच, स्वीड और जर्मन साउथ कैरोलोइना में और उसके आस-पास कुछ फ्रैंच उगनों और कहीं कहीं, स्पेनी, इटालीय और पुर्तगाली भी बस गए थे। 1680 ई. के पश्चात् इंग्लैंड इनका आगमन स्रोत नहीं रहा। इन सब औपनिवेशिकों ने वहाँ जाकर अंग्रेजी भाषा, कानून, रीतिरिवाज और विचारधारा को अपना लिया। 1700 ई. में अंग्रेजी बस्तियाँ न्यू हैंपसर, मसाच्यूसेट्स, कनेक्टिकट, न्यू हैवेन, रोड आइलैंड, न्यूयार्क, न्यू जर्सी, पेनसिलवेनिया, डिलावेयर, मेरिलैंड, वजींनिया, नार्थ कैरोलाइना और साउथ कैरोलाइना में स्थपित हो चुकी थीं। सबसे अंतिम बस्ती जार्जिया 1753 ई. में स्थापित हुई।
इन उपनिवेशों में उत्तरी भाग के निवासी व्यवसाय तथा व्यापार में संलग्न थे पर दक्षिणवालों का पेशा केवल कृषि ही था। इन विविधताओं का कारण भौगोलिक परिस्थिति थी। बंदरगाहों के निकट गाँवों और नगरों में बसकर न्यू इंग्लैंडवासियों ने शीघ्र ही अपना जीवन शहरी बना लिया, तथा लाभदायक व्यवसाय ढँढ़ निकाले। इससे उनकी आर्थिक नींव मजबूत हो गई। उत्तर उपनिवेशों की अपेक्षा मध्यवर्ती उपनिवेशवालों की आबादी अधिक मिली-जुली थी। इनके विपरीत वर्जीनिया, मेरिलैंड, कैरोलाइना तथा जार्जिया नामक दक्षिणी बस्तियाँ प्रधानतया ग्रामीण थीं। वर्जीनिया अपनी तंबाकू के लिए यूरोप में प्रसिद्ध हो चुका था। 17वीं शताब्दी के अंत और 18वीं शताब्दी के आंरभ में मेरिलैंड और वर्जीनिया की सामाजिक व्यवस्था में वे लक्षण आ चुके थे जो गृहयुद्ध तक रहे। अधिकतर राजनीतिक अधिकार और बढ़िया भूमि प्लांटरों ने अपने अधिकर में कर रखी थी। यह दासप्रथा, जिसका दक्षिणी उपनिवेशों में बड़ा जोर था और जिसे हटाने के लिए दक्षिण के लोग तैयार न थे, आगे चलकर गृहयुद्ध का एक बड़ा कारण बनी।
इन तीन क्षेत्रों के उपनिवेशों में भौगोलिक और आर्थिक पृथकता होतेे हुए भी एक विशेषता यह थी कि इनपर इंग्लैड की सरकार के प्रभाव का अभाव रहा और सभी अपने को पूर्णतया स्वतंत्र समझते रहे। इंग्लैंड की सरकार ने नई दुनिया पर अपने स्थानीय शासनाधिकार कंपनियों और उनके मालिकों को साँप दिए थे। परिणाम यह हुआ कि वे इंग्लैंड से दूर होते गए। इंग्लैंड की सरकार इनपर अपना नियंत्रण रखना चाहती थी और 1651 ई. के पश्चात् समय समय पर उसने ऐसे कानून बनाना आरंभ किया जिनमें उपनिवदेशों के व्यापारिक और साधारण जीवन पर नियंत्रण रखने का प्रयास था।
स्वतंत्रता की ओर : यूरोप की राजनीतिक परिस्थितियों का अमरीका पर बराबर प्रभाव पड़ता रहा। यू ट्रेक्ट की संधि के अनुसार अकेडिया, न्यूफाउंडलैंड और हडसन की खाड़ी फ्रांसीसियों से अंग्रेजी को मिलीं। कनाडा और अंग्रेजी उपनिवेशों के बीच कोई सीमा निर्धारित नहीं थी और यूरोप में आस्ट्रिया के राजकीय युद्ध में अंग्रेज और फ्रांसीसी विपक्षी थे। अत: अमरीका में भी फ्रांसीसियों , जिनका कनाडा पर अधिकार था, और अंग्रेजों के बीच 1754 ई में युद्ध छिड़ गया। 1759 में क्यूबेक का पतन होते ही फ्रांसीसियों का पासा पलट गया। 1763 ई. की संधि में फ्रांस ने इंग्लैंड को सेंट लारेंस की खाड़ी के दो द्वीपों को छोड़कर, ओहायो घाटी और कनाडा भी दे दिया। युद्ध के कारण अमरीका की 13 बस्तियाँ राजनीतिक एकता के सूत्र में बँध गई और उनकी अपनी शक्ति और संगठन का पता चला। अमरीका में बने माल के आयात पर इंग्लैंड में नियंत्रण तथा यूरोप में अमरीका के निर्यात माल पर लगी चुंगी से व्यापार को बड़ा धक्का पहुँचा। इंग्लैंड केवल कच्चा माल और अझ लेना चाहता था और अमरीका में अपने बने हुए माल की खपत चाहता था। ग्रेनविल ने उन उपनिवेशों में अंग्रेजी सेना रखने का सुझाव दिया जिसके खर्च का बोझ अमरीका की जनता पर पड़ता था। इंग्लेंड ने कानून द्वारा कर लगाकर अमरीका को सर करना चाहा। इन्हीं करों में स्टैंप कर भी था। इसका वहाँ कड़ा विरोध हुआ और न्यूयार्क की एक सभा में अमरीकियों ने एलान किय कि जब तक उनका प्रतिनिधान इंग्लैंड की पर्लियामेंट में न होगा तब तक उसका लगाया कर भी उन्हें मान्य न होगा। अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा और वह कर वापस ले लिया गया।
1667 ई. में चाय, शीशे तथा अन्य चीजों पर कर लगाने का प्रस्ताव हुआ जिससे अमरीकी उपनिवेशों में इसका भी विरोध हुआ और चाय को छोड़कर जिससे बाकी सब पर चुंगी की छूट दे दी गई। उन्होंने अंग्रेजी चाय का बहिष्कार किया। बोस्टन में कुछ अमरीकनों ने रेड इंडियन के वेश में अंग्रेजी जहाजों पर चढ़कर उनकी चाय समुद्र में फेंक दी। ब्रिटिश पर्लियामेंट में इस घटना से बड़ी उत्तेजना हुई और जार्ज तृतीय ने कड़ी नीति अपनाने का आदेश दिया। मसाच्यूसेट्स के प्रस्ताव को लेकर फिलाडेल्फिया में 5 सितंबर, 1774 ई. को एक सभा हुई जिसमें सम्राट् तथा इंग्लैंड और कनाडा की जनता के नाम संदेश भेजना स्वीकार किया गया। इसमें स्वतंत्रता का प्रश्न नहीं उठाया गया था। जनरल गेज़ द्वारा मसाच्यूसेट्स में अमरीकन नेताओं को पकड़ने और गोली चलाने से आग भड़क उठी और युद्ध आरंभ हो गया। फिलाडेल्फिया की दूसरी सभा में जार्ज वाशिंगटन को नेता चुना गया। उस समय अंग्रेजी सेना की संख्या 10,000 तक पहुँच चुकी थी। 4 जुलाई, 1776 ई. को टामस जेफरसन द्वारा लिखित अमरीकी स्वतंत्रता का घोषणापत्र कांटिनेंटल सभा में पास हुआ।
अंग्रेजी सेना को आरंभ में कुछ सफलताएँ मिलीं और वार्शिगटन को निरंतर पीछे हटना पड़ा। क्रांति का युद्ध छह वर्ष से अधिक काल तक चलता रहा जिस बीच अनेक महत्वपूर्ण युद्ध हुए। ट्रेंटन और प्रिंस्टन की जीतों ने उपनिवेशों में आशा जागृत कर दी। सितंबर, 1777 ई. में हाव ने फिलाडेल्फिया पर अधिकार कर लिया, पर शरद् में अमरीकनों की युद्ध में सबसे बड़ी जीत हुई। 17 अक्टूबर, 1777 ई. को ब्रिटिश सेनापति वरगोइन ने अपनी पाँच हजार सेना सहित आत्मसमर्पण कर दिया। फ्रांस ने, जो अपनी पुरानी दुश्मनी के कारण इंग्लैंड के विपक्ष में था, अमरीका के साथ व्यापारिक और मित्रता की संधियाँ कर लीं जिसमें बेंजामिन फ्रैंकलिन का बड़ा हाथ था। 16वें लुई ने जनरल शेशंबो की अध्यक्षता में 6,000 जवानों की एक प्रबल सेना भेजी और फ्रेंच समुद्री बेड़े ने बिटिश सेनाओं को सामान भेजने में कठिनाई डाल दी। 1778ई. अंग्रेजों को फिलाडेल्फिया खाली कर देना पड़ा। वाशिंटन और शेशांबों की सेनाओं के प्रयास से लार्ड कार्नवालिस को 17अक्तूबर, 1781ई. में यार्कटाउन में आत्मसमर्पण करना पड़ा। इंग्लैंड में प्रधान मंत्री लार्ड नार्थ थे जिन्होंने त्यागपत्र दे दिया और अप्रैल, 1782 ई. में नया मंत्रिमंडल बनाया गया। 1783 ई. में पेरिस के संधिपत्र पर हस्ताक्षर हुए। 13 अमरीकन राज्यों को पूर्णतया स्वतंत्रता मिली। केवल कनाडा अंग्रेजों के पास रह गया और मिसीसिपी नदी उत्तर की सीमा मान ली गई। 1787 ई. में फिलाडेल्फिया में एक कन्वेंशन हुआ जिसमें देश का विधान बनाने और केंद्रीय शासनव्यवस्था के लिए सरकार बनाने का निश्चय किया गया। 17 सितंबर 1787 ई. को प्रस्तुत संविधान पर उपस्थित राज्यों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर कर दिए। 21 जून, 1782 ई. को संविधान अंतिम रूप में सब राज्यों द्वारा स्वीकृत हो गया। राष्ट्रीय संघ की कांग्रेस ने राष्ट्रपति के प्रथम चुनाव की व्यवस्था की और 30 अप्रैल, 1789 को वाशिंगटन ने अपने पद की शपथ ली।
गृहयुद्ध तक : विधान के अंतर्गत 13 राष्ट्रों ने एक समझौता किया और अपने कुछ अधिकार केंद्र को सौंप दिए, पर आंतरिक मामलों में वे पूणतया स्वतंत्र थे। संयुक्त राज्य की सीमा बढ़ाने के लिए यह आवश्यक हो गया कि अमरीका के और भागों पर अधिकार किया जाए। 1861 ई. के गृहयुद्ध के पहले का युग वास्तव में संयुक्त-राज्य-क्षेत्र-विस्तार-युग कहलाने योग्य है। 1787 ई. में उत्तरी पश्चिमी प्रदेश , जिनमें बाद में चलकर छह नए राज्य बने, और 1803 ई. में लूईजियाना प्रदेश डेढ़ करोड़ डालर में फ्रांस से खदीद लिए गए। उस समय जेफ़रसन राष्ट्रपति था। संयुक्त राज्य को 10 लाख वर्ग मील से अधिक भूमि ओर न्यूआर्लीस का बंदरगाह मिल गया। अमरीका महाद्वीप के दो तिहाई भाग पर इसका अधिकार हो गया। बाकी एक तिहाई भाग 1845-50 ई. के बीच अधिकार में आया। देश की समस्त नदियों पर केंद्रीय नियंत्रण हो गया। 19वीं शताब्दी के प्रथम भाग में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच हुए युद्ध में अमरीकी व्यवस्था की नीति बहुत समय तक कायम न रह सकी और उसके व्यापार को बड़ी क्षति पहुँची। 1812 में ब्रिटेन के विरुद्ध अमरीका को युद्धक्षेत्र में उतरना पड़ा। स्थल पर तो संयुक्त राज्य को असफलता मिली पर समुद्र में उसे विजय प्राप्त हुई। युद्ध की समाप्ति घेट की संधि से हुई जिसे 1815 ई. में संयुक्त राज्य ने स्वीकार कर लिया। इस युद्ध में अमरीकी जनसंख्या को बड़ी क्षति पहुँची थी, पर इसका महत्वपूर्ण परिणाम राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना का उद्गार हुआ। संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अब समानता का पद प्राप्त कर चुका था। इस युग में जेफ़रसन और मनरो के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। जो नए राज्य बने उनमें 1803 ई. में ओहायो, 1812 ई. में लूइज़ियाना, 1816 ई.में इंडियाना, 1817 ई. में मिसीसिपी, 1818 ई. में इलिनाय, 1819 ई. में अलाबामा, 1820 ई. में मेन और 1821 ई. में मिसौरी के नाम उल्लेखनीय हैं। इसी समय मनरो डाक्ट्रिन (नीति) की घोषणा की गई जिससे अमरीका का यूरोप के घरेलू मामलों तथा यूरोपियन उपनिवेशों और दोनों अमरीकी द्वीपों में यूरोपीय शक्तियों का हस्तक्षेप करना अवैध हो गया। रूस ने इसे मानकर अलास्का में 54.40 पर अपनी दक्षिणी सीमा निर्धारित की। अंत में 1861 में रूस ने इसे 15 लाख डालर पर अमरीका के हाथ बेच दिया।
इस काल उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में दासप्रथा को लेकर वैमनस्य की भावना तीव्र हो उठी जो अमरीकी गृहयुद्ध का एक बड़ा कारण बनी। उत्तरी राज्यों में दासप्रथा को हटा दिया गया था पर दक्षिणी राज्य अपनी आर्थिक और भौगोलिक परिस्थितियों के कारण उसे बनाए रखना चाहते थे। वे उसे घरेलू मामला समझते थे जिसमें उनके मत से, कांग्रेस को हस्तक्षेप करने का अधिकार न था। अमरीकी राजनीति में भी दासप्रथा को लेकर राजनीतिक दलों में फूट पड़ गई। दासप्रथा के विरोधियों और पक्षपातियों के बीच संघर्ष का जोर बढ़ता जा रहा था। 1857 ई. में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बहुमत से किए गए ड्रेक स्काट के फैसले ने आग में घी का काम किया। 8 फरवरी, 1865 ई. 'कानफेडरेट स्टेट ऑव अमेरिका' का संगठन हुआ जिसका लिंकन ने विरोध किया। 12 अप्रैल को चार्ल्स्टन (साउथ कैरोलाइना) के फ़ोर्ट सुमटर पर गोलाबारी हुई और गृहयुद्ध आरंभ हो गया। यह चार वर्ष चला और अंत में 8 अप्रैल, 1865 ई. को दक्षिणी सेना ने हथियार डाल दिए।
विस्तार और सुधार का युग : गृहयुद्ध और प्रथम विश्वयुद्ध के 50 वर्षो के मध्यकाल में संयुक्त राज्य में भारी परिवर्तन हुए। बड़े बड़े कारखाने खुले, महाद्वीप के आर पार रेल द्वारा यातायात सुगम हो गया तथा समुद्र, नगरों और हरे भरे खेतों ने देश की आर्थिक उन्नति में योग दिया। लोहे, भाप, बिजली के उत्पादन और वैज्ञानिक आविष्कारों ने राष्ट्र में नए प्राण फूँके। संयुक्त राज्य बड़ी तेजी से प्रगति कर चला। 1914 ई. के यूरोपीय महायुद्ध के समाचार से इसे भारी धक्का पहुँचा पर अमरीकी उद्योग पश्चिमी राष्ट्रों की युद्धसामग्री
की माँग के कारण फूलने फलने लगा। 1915 ई. में जर्मनी के सैनिक नेताओं ने घोषणा की कि वे ब्रिटिश द्वीपों के आसपास के समुद्र में किसी भी व्यापारिक जहाज को नष्ट कर देंगे। राष्ट्रपति विल्सन ने अपनी नीति घोषित की कि अमरीकी जहाजों अथवा जन के नाश करने के लिए जर्मनी उत्तरदायी होगा। जर्मन पनडुब्बियों ने अमरीका के कई जहाज डुबो दिए। अत: 2 अप्रैल, 1917 ई. को अमरीका ने विश्वयुद्ध में प्रवेश किया और उसके सैनिक और जहाज फ्रांस पहुँच गए। जनवरी, 1918ई. में विल्सन ने न्याययुक्त शांति के आधार पर अपने सुप्रसिद्ध 14 सूत्र रचे। इसके अंतर्गत राष्ट्रसंघ का निर्माण करना, छोटे बड़े राज्यों को समान राजनीतिक स्वतंत्रता और राष्ट्र की अखंडता का आश्वासन दिलाना था। उन्हीं सूत्रों के आधार पर 11नवंबर, 1918ई. को जर्मनी ने अस्थायी संधिपत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। विल्सन के सूत्रों का और राष्ट्रों में स्थायी संधि का पूर्णतया पालन नहीं किया गया, अत: संयुक्त राज्य राष्ट्रसंघ (लीग ऑव नेशंस) का सदस्य नहीं बना।
20वीं शताब्दी के तीसरे दशक में अमरीका में आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ। कृषि क्षेत्र में मंदी आ गई और संसार के बाजार धीर-धीरे अमरीका के लिए बंद हो गए। 1929 की पतझड़ में शेयर बाजार के भाव गिरे और लाखों व्यक्तियों की जीवन भर की संचित पूँजी नष्ट हो गई। कारखाने बंद हो गए और लाखों आदमी बेकार हो गए। 1932 ई. के चुनाव में डेमोक्रैट फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट की जीत हुई। उसने न्यू डील नामक व्यापारिक नीति से अमरीका की आर्थिक स्थिति सुधारने का प्रयास किया और उसमें वह सफल भी हुआ। 1939 ई. में द्वितीय महायुद्ध छिड़ गया। अमरीका ने पहले तो तटस्थता की नीति अपनाई, पर 1941 ई. में उसे भी युद्ध में आना पड़ा। लगभग चार वर्षो के युद्धकाल में अमरीका ने सैनिकों और युद्धसामग्री से मित्रराष्ट्रों की बड़ी सहायता की। 8 मई, 1945 ई. को जर्मनी की सेना ने आत्मसमर्पण किया और जापान के हीरोशिमा और नागासाकी द्वीपों पर परमाणु बम गिरने के फलस्वरूप 2 सितंबर, 1945 ई. को उसने भी आत्मसमर्पण किया और विश्वयुद्ध का अंत हुआ। 26 जून, 1945 ई. को 51 राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्रीय घोषणापत्र स्वीकार किया जिसमें एक नए अंतरराष्ट्रीय संघ का संविधान था। अमरीका के इतिहास में एक नया अध्याय आरंभ हुआ। इसने विश्व की अन्य शक्तियों के साथ गुटबंदी शुरू की। उत्तर अटलांटिक (नैटो) और दक्षिण-पूर्वी एशियाई (सीटो) समझौते तथा बगदाद पैक्ट से अमरीका का बहुत से राज्यों के साथ सैनिक गठबंधन हो गया, पर इसके जवाब में रूस और उसके साथी देशों ने भी अपने गुट बना लिए।[१][२]
सन् 1950 से 1953 ई. तक अमरीका ने कोरियाई युद्ध में संयुक्तराष्ट्र-संघ की सेनाओं की सैनिक, धन तथा अन्य युद्धोपयोगी सामग्री देकर काफी सहायता की। 1956 ई. के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के जनरल आइज़नहावर दोबारा राष्ट्रपति चुने गए। अमरीका ने 1949 ई. में स्थापित जनवादी चीन (पीकिंग) को मान्यता नहीं दी, इसके विपरीत वह फारमूसा द्वीपसमूह में चांग काई शेक की सरकार को ही चीन की वास्तविक सरकार के रूप में मानता रहा और उसे पर्याप्त सहायता भी देता रहा। उधर स्तालिन की मृत्यु के बाद हालाँकि रूस और अमरीका के बीच निरंतर चल रहे शीतयुद्ध में कुछ कमी हुई फिर भी 1962 ई. में उक्त दोनों के बीच तनाव उस समय अपनी चरमावस्था पर पहुँच गया जब राष्ट्रपति केनेडी ने क्यूबा को सैनिक सामग्री पहुँचानेवाले रूसी जहाजों को समुद्र में ही रोक लिया और क्यूबा के स्थापित रूसी प्रक्षेपास्त्रों के अड्डों को समाप्त करने की माँग की। तत्कालीन रूसी प्रधान मंत्री ्ख्राुश्चोव ने लेबनान से अमरीकी अड्डे खत्म करने की शर्त रखी। किसी तरह मामला टला और संसार भयंकरतम युद्ध की विभीषिका से बाल बाल बचा। नवंबर, 1963 में राष्ट्रपति केनेडी की डलास (टेक्सास) में हत्या कर दी गई और तत्कालीन उपराष्ट्रपति लिंडन जानसन ने राष्ट्रपति की हैसियत से कार्यभार सँभाला। उन्होंने कांग्रेस के माध्यम से अमरीका में इस प्रकार की योजनाएँ चालू कीं जिनसे देश के अंतर्गत आर्थिक दृष्टि से कमजोर समुदायों को विकास का अवसर मिल सके, हालाँकि काले गोरे के प्रश्न को लेकर अमरीका में तनाव बना ही रहा। जहाँ तक अंतर्राष्ट्रीय स्थिति का प्रश्न था, राष्ट्रपति जानसन ने दक्षिणी वियतनाम एवं पकिस्तान को अत्यधिक सैनिक एवं आर्थिक सहायता दी। पाकिस्तान ने 1965 में अमरीकी हथियारों के भरोसे ही भारत से युद्ध छेड़ा और मुँह की खाई।
नवंबर, 1968 में रिचर्ड एन. निक्सन (रिपब्लिकन) अमरीका के राष्ट्रपति चुने गए। इसी वर्ष नागारिक अधिकारों के लिए संघर्षशील काले अमरीकियों के नेता मार्टिन लूथर किंग तथा राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी राबर्ट केनेडी (जान.एफ.केनेडी के भाई) की हत्या कर दी गई। 1968 में ही रूस और अमरीका द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तुत परमाणु शस्त्रों की होड़ पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव राष्ट्रसंघ में पारित किया गया।
नवंबर, 1972 में हुए 92वीं कांग्रेस के मध्यावधि चुनाव में रिपरिब्लकन दल को न तो सीनेट और न ही अवर सदन में बहुमत मिला। इससे अमरीकियों ने डेमोक्रैटिक दल को स्पष्टत: शक्तिशाली बना दिया। फलत: राष्ट्रपति को अपने मंत्रिमंडल में व्यापक परिवर्तन करने पड़े और आगामी चुनाव जीतने के लिए निक्सन ने चीन तथा रूस की सद्भावनायात्राएँ भी कीं।
दिसंबर, 1971 ई. में भारत तथा पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में राष्ट्रपति निक्सन ने खुले आम पाकिस्तान का पक्ष लिया। राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय मंच पर जब वह किसी भी तरह भारत को न झुका सके तो भयादोहन करने के लिए सातवें बेड़े का परमाणुशक्ति चालित 'एंटरप्राइज़' नामक युद्धपोत हिंद महासागर में भेजा। इससे भारत और अमरीका के संबंधों पर बहुत बुरा असर पड़ा।
नवंबर, 1972 में चुनाव जीतकर निक्सन पुन: अमरीका के राष्ट्रपति हो गए। लंबे अरसे से चला आ रहा वियतनामी युद्ध भी 27 जनवरी, 1973 को उस समय समाप्त हो गया जब पेरिस में उत्तरी वियतनाम, दक्षिणी वियतनाम, राष्ट्रीय मुक्ति मोरचे (वियतकांड्) द्वारा स्थापित अस्थायी क्रांतिकारी सरकार तथा अमरीका के विदेश मंत्रियों ने वियतनाम संधि पर हस्ताक्षर कर दिए। 30 जनवरी को युद्धविराम का कार्य प्रारंभ हुआ और 3 फरवरी, 1973 को लगभग पूर्ण युद्धविराम हो गया। लेकिन इस बीच अमरीका की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। फलत: 13 फरवरी, 1973 ई. को अमरीकी डालर का अवमूल्यन करना पड़ा।