सैमुएल टेलर कोलरिज़
सैमुएल टेलर कोलरिज़
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 175 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | बृजमोहनलाल साहनी |
सैमुएल टेलर कोलरिज़ (1772-1834 ई.)। अंगरेज साहित्यकार जिनकी कवि, नाटककार, आलोचक और दार्शनिक के रूप में ख्याति है। उनका जन्म डेवनशायर के आटरी सेंट मेरी नामक स्थान पर सन् 1772 में हुआ था। उनके पिता जान कालरिज पादरी थे। उनकी इच्छा उन्हें भी पादरी बनाने की थी। अत: वे क्राइस्ट्स हास्पिटल में भरती हुए और आठ वर्ष तक वहाँ पढ़ा। पश्चात् 1791 में उच्च शिक्षा के लिये जेसस कालेज (केंब्रिज) में आए। किंतु दो वर्ष बाद ही वे विश्वविद्यालय जीवन से ऊब गए और लंदन चले आए। यहां वे एक कल्पित नाम से सेना में भरती हुए पर वे वहाँ असफल घुड़सवार सिद्ध हुए। उनके मित्र उन्हें वहाँ से वापस लौटा लाए और उन्होंने पुन: अध्ययन प्रारंभ किया किंतु बिना उपाधि प्राप्त किए ही उन्हें विश्वविद्यालय छोड़ना पड़ा। वे आक्सफोर्ड आए और वहाँ उनका परिचय सदे (Southey) से हुआ। दोनों मित्रों ने पैनटिसाक्रेसी नामक एक योजना को अमरीका में सस्क्वेहना के तट पर कार्यान्वित करने का विचार किया। वे ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे जिसमें युवक ओर युवतियाँ एक साथ मिल जुलकर रह सके और सबको समान अधिकार प्राप्त हो। किंतु ऐसे समाज की स्थापना केवल कल्पना बनकर ही रह गई। सन् 179५ में कोलरिज ने सारा फिकर से और सदे ने सारा फिकर की बहिन से विवाह किया। ये विवाह दुर्भाग्यपूर्ण सिद्ध हुए। शैली को छोड़कर कोलरिज संभवत: सर्वाधिकअभागे पति कहे जाते हैं। वे जीवन पर्यंत पत्नी की किसी भी अभिलाषा अथवा अनुरोध को पूर्ण करने में असमर्थ रहे।
कोलरिज ने अपना जीवन स्वतंत्र लेखक के रूप में आरंभ किया और गद्य तथा पद्य दोनों में रचनाएँ की। उन्होंने अनेक पत्र पत्रिकाओं का संचालन आरंभ किया किंतु उनका अस्तित्व जलबद्बुदों सा रहा जो क्षणभर अपनी चमक दिखाकर पन: विलीन हो जाते हैं। वर्ड्सवर्थ के सहयोग से उन्होंने युग प्रवर्तक लिरिकल बैलेड नामक एक छोटी सी पुस्तक का प्रकाशन कराया जिसमें उनकी विख्यात कविता एंश्येंट मैरिनर भी संकलित थी। कोलरिज की यह महान् कविता सन् 1797 में, जब वे 2५ वर्ष के थे लिखी गई थी।
आगे चलकर कोलरिज का जीवन विषादपूर्ण हो गया। बचपन से ही वातरोग से ग्रस्त कोलरिज ने शारीरिक कष्ट के निवारणार्थ अफीम का आश्रय लिया और तीस वर्ष की अवस्था तक पहुँचते पहुँचते अफ़ीम खाने की लत लग गई। सन् 1804 में उन्हें माल्टा जाने का निमंत्रण मिला। वहाँ पहुँचने पर वे गवर्नर सर अलेक्जेंडर बाल के सचिव हो गए। उक्त पद पर उन्होंने दस महीने कार्य किया ओर तत्पश्चात शरीर और मत दोनों से ही निराश होकर घर लौट आए। उनके जीवन के अंतिम वर्ष रात्रि विनोद ओर संलाप में व्यतीत होने लगे और फलत: उनका काव्य संबंधी प्रेरणास्रोत क्षीण पड़ गया। उनके परम मित्र चार्ल्स लैंब ने एक विनोदपूर्ण काल्पनिक चित्रण प्रस्तुत किया है कि एक बार कोलरिज अपनी आँख बंदकर उनके कोट के एक बटन को पकड़कर इतनी तन्मयतापूर्वक उनसे वार्तालाप करते रहे कि उन्हें वहँं से एक आवश्यक कार्यवश जाना कठिन हो गया था। इस पर वह धीरे से अपना बटन काटकर चुपचाप चलते बने। किंतु पाँच घंटे के उपरांत पुन: उस स्थान पर आकर क्या देखते हैं कि कोलरिज पूर्ववत् हाथ में बटन पकड़े और आँख बंदकर बातें कर रहे थे। कालरिज का देहांत हाईगेट स्थान पर 2५ जुलाई, 1834 को हुआ।
अंग्रेजी साहित्य में कोलरिज की ख्याति कवि, समीक्षक, दार्शनिक एवं प्रभावशाली वक्ता, इन चार रूपों में हैं। अपने समकालीन व्यक्तियों पर उन का वैयक्ति का प्रभाव अलौकिक था। जब तक वर्ड्सवर्थ का संपर्क इनसे नहीं हुआ, वर्ड्सवर्थ की कोई भी रचना वास्तविक रूप में कविता कहलाने योग्य नहीं थी; यहाँ तक कि हैज़लिट जैसे हठी और अहंकारी व्यक्ति तक ने स्वीकार किया है कि कोलरिज एकमात्र व्यक्ति थे जिनसे उसने कुछ सीखा और ग्रहण किया। सन् 1798 और उनकी मृत्यु के बीच की अवधि में कविता और गद्य आलोचना संबंधी शायद ही कोई ऐसा आंदोलन हुआ हो जो कोलरिज का ऋणी न हो।
कवि रूप में कोलरिज की उत्कृष्ट कविताएँ गिनी चुनी कुल 6-7 हैं-‘दि राइम ऑव दि ऐंश्येंट मैरिनर’, ‘कुबला खाँ’, ‘क्रिस्टावेल’, ‘यूथ एंड एज’, दि ओड टु फ्रांस, तथा ‘डिजेक्शन’। दि राइम ऑव द ऐंश्येंट मैरिनर अंग्रेजी भाषा की श्रेष्ठ मौलिक कविताओं में गिनी जाती है। वर्णन में सुस्पष्ट संक्षेप, कथात्मक गति सूक्ष्म विवरण, मध्यकालीन चमत्कार एवं अलौकिक परिवेश में यह कविता अपना विश्ष्टि स्थान रखती है। यह पापजन्य ग्लानि ओर पश्चात्ताप के माध्यम से, उसकी ‘मुक्ति’ विषयक दु:खांत रचना है और सब जीवों के प्रति प्रेम रखना इसका नैतिक संदेश है।
‘कुबला खाँ’, यद्यपि अधूरी है तथापि अंग्रेजी साहित्य में कदाचित् सर्वाधिक वायव्य कविता है। इसमें रम्य वर्णन, अतुलनीय संगीतात्मकता, कल्पनात्मक सांकेतिकता, शब्दचित्र तथा सशक्त काव्यशैली का प्राचुर्य है। क्रिस्टाबेल मध्ययुगीन ऐंद्रजालिक कथा पर आधारित है जिसमें विलक्षण वातावरण की सृष्टि कर पाप तथा पुण्य की परस्पर विरोधी शक्तियों का अनंत संघर्ष दिखाया गया है। ‘डिजेक्शन तथा ऐन ओड’ कवि की करुण व्यथा की अभिव्यक्तियाँ हैं जिनमें वह कल्पना की सृजनात्मक शक्ति के क्षीण होने पर नैराश्य और असफलता का अनुभव करता है। और फलस्वरूप इस कविता में यत्र तत्र दुरूह आध्यात्मिकता आ गई है। सर्वातिशायी सिद्धांत की जितनी पूर्ण अभिवयंजना इस कविता में हुई है वैसी कोलरिज की किसी अन्य कविता में नहीं है। संक्षेप में, जिस प्रकार वर्ड् सवर्थ प्रकृतिवाद के प्रधान पुजारी थे वैसे ही कोलरिज रोमांटिसिज्म अर्थात् स्वच्छंदतावाद के प्रमुख पुजारी थे।
समीक्षा के क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं बायोग्राफिया। लिटरेरिया और लेक्चर्स ऑन शेक्सपीयर। पहली कृति अंग्रेजी आलोचना की एक प्रमुख पुस्तक कही जाती है। दूसरी पुस्तक के द्वारा कोलरिज शेक्सपीयर के प्रथम महान् समीक्षक माने जाते हैं। कोलरिज ही प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने काव्य की संश्लेषणात्मक और अलौकिक शक्ति को कल्पना की संज्ञा दी। उनके मतानुसार कल्पना अनेक के पीछे एक को आत्मभूत करती है। यह वह तत्व है जो पदार्थ और मन की पार्श्वभूमि में विद्यमान है। वह ईश्वरीय प्रज्ञा है जो पदार्थ, मन और शक्ति की परिचालित करती हुई ईश्वरीय शक्ति से मिलाती है। कोलरिज ही प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने भावतरंग अर्थात फैंसी और कल्पना अर्थात इमैजिनेशन का भेद प्रस्तुत किया। निस्संदेह अंतदृष्टि की स्थिरता और विचारगांभीर्य में यह सबसे महान् अंग्रेज आलोचक हैं।
दार्शनिक के रूप में इंग्लैंड के यह प्रथम सर्वातिशायी विचारक हैं। दर्शन में उनकी सबसे विख्यात पुस्तक ‘एड्स टु रिफ्लेक्शन’ है जो 182५ में प्रकाशित हुई थी। इसमें जिस प्रमुख दार्शनिक मत का प्रतिपादन किया गया है वह है, तर्कशक्ति और ज्ञान शक्ति का भेद। तर्कबुद्धि वह शक्ति है जिसके द्वारा हम इंद्रियबोध से चिंतन और विचार की ओर अग्रसर होते हैं जबकि ज्ञानबुद्धि किसी अनुभूति का पहले से ही निर्णय रखती है अथवा किसी अतीत अनुभव पर हावी होकर आगत आवश्यकता का अतिक्रमण करती है। तर्कबुद्धि का उपयुक्त क्षेत्र आध्यात्मिक संसार नहीं वरन् यथार्थ संसार है। किंतु परम आध्यात्मिक सत्यों का उद्घाटन ज्ञान बुद्धि करती है।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं. ग्रं.-कंप्लीट वर्क्स: डब्ल्यू जी. टी. शेड द्वारा संपादित (7 खंड) न्यूयार्क; दि कंप्लीट पोएटिकल वर्क्स ई. एच. कोलरिज द्वारा संपादित (2खंड); आक्सफोर्ड लेटर्स : ई. एच. कोलरिज द्वारा संपादित (2 खंड); एच. डी. ट्रेल: कोलरिज (इंग्लिश मेन ऑव लेटर्स सीरीज़); जे. डी. कैंपबेल : सैमुएल टेलर कोलरिज ; सर टी. एल. एच. केन: लाइफ ऑव सैमुएल टेलर कोलरिज एच. आई. ए. फ़ासेट : सैमुएल टेलर कोलरिज; एच. पॉटर: कोलरिज ऐंड एस. टी. सी. ; कोलरिज, स्टडीज़ बाई सेवरल हैंडस ऑन दि हंड्रेडथ ऐनीसर्वरी ऑव हिज़ डेथ ई. ब्लंडेन ऐंड ई. एल. ग्रिग्स द्वारा संपादित।