सैम्युएल क्राम्पटन
सैम्युएल क्राम्पटन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 200 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
सैम्युएल क्राम्पटन (1753-1827 ई.) अंग्रेज आविष्कारक। लंकाशायर के निकट फरउड में 3 दिसंबर, 1753 ई. को जन्म। बचपन में ही एक सूत कातने की मिल में काम करने लगा। कातनेवाली चर्खी की खामियों की ओर उसका ध्यान गया और उनको दूर करने का विचार उसके मन में उठा। पाँच छ वर्ष तक वह अपना अतिरिक्त समय उसमें लगाता रहा। इसके लिये वह बोल्टन थियेटर में वायलिन बजाकर भी पैसे जुटाता था। 1779 ई. के लगभग वह मसलिन बुनने योग्य सूत कातनेवाली मशीन बनाने में सफल हुआ। उसके इस मशीन पर कते सूत की माँग होने लगी पर वह अपनी मशीन को पेटेंट कराने में सफल न हो सका। निदान अनेक उत्पादकों के इस आश्वासन पर कि वे उसके आविष्कृत चर्खे के प्रयोग के लिये उसे धन देंगे, उसने अपने चर्खे का भेद बता दिया। किंतु इसके लिये उसे कुल 60 पौंड प्राप्त हुए। तब उसने स्वयं कातने का कार्य आरंभ किया पर उसे अधिक सफलता नहीं मिली। 1800 ई. में उसकी सहायता के लिये चंदाकर 800 पौंड एकत्र किए गए और 1812 ई. में पार्लामेंट ने उसे पाँच हजार पौंड प्रदान किए। इस धनराशि से उसने पहले ब्लीचर का बाद में रूई और सूत कातने का व्यापार आरंभ किया पर इसमें भी वह असफल रहा। 26 जून, 1827 ई. को बोल्टन में उसकी मृत्यु हुई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ