हड्डी का कोयला
हड्डी का कोयला
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 166 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
हड्डी का कोयला हड्डी के कोयले का उपयोग प्रमुख रूप से रंगों और गंधों को दूर करने के लिये होता है। एक समय अनेक देशों में सफेद चीनी के प्राप्त करने के लिये इसका उपयोग होता था।
कोयला कठोर हड्डियों से बनाया जाता है। बहुत दिनों से रखी या गाड़ी हड्डियों से अच्छा कोयला नहीं बनता। कोयला बनाने में हड्डियों को टुकड़े टुकड़ेकर, भाप और विलायक से निष्कर्षितकर तथा हड्डी को भंभक में रखकर धीरे धीरे गरम करते हैं। इसमें कुछ गैसें (20 प्रतिशत), कुछ हड्डी तेल (3 से 5 प्रतिशत), कुछ अलकतरा (लगभग 6 प्रतिशत) और कुछ ऐमोनिया (प्राय: 6 प्रतिशत) प्राप्त होता है। हड्डी का लगभग 60 प्रतिशत कोयले के रूप में प्राप्त होता है। हड्डी के कोयले में निम्नलिखित पदार्थ रहते हैं :
पदार्थ प्रतिशत
कैलसियम फास्फेट 70-75
कार्बन 9-11
जल 8
सिलिका 0.5
कैलसिमय सल्फेट 0.25
लोहे के आक्साइड 0.15
कैलसियम सल्फाइड 0.1 से कम
कोयले का रंग हल्का काला और कोयले की राख सफेद या मलाई के रंग की होती है। कोयला दृढ़ और सारध्रं होता है। कुछ दिनों के उपयोग के बाद कोयले की सक्रियता नष्ट हो जाती है, पर उसको पुनजीर्व्ताि किया जा सकता है। पीछे यह निष्क्रिय हो जाता है और खाद के लिये प्रयुक्त होता है। इसमें कैलसियम फास्फेट रहने के कारण यह बहुमूल्य खाद है।[१]।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.----फूलदेव सहाय वर्मा: कोयला (हिंदी समिति, उत्तर प्रदेश शासन, लखनऊ )