महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 96 भाग 10

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

षण्णवतितम (96) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: षण्णवतितम अध्याय: भाग-10 का हिन्दी अनुवाद

धन, विद्या और एश्‍वर्य जिनकी बुद्वि को विचलित नहीं कर सकते तथा जो चंचल हुई बुद्वि को भी विवेक से काबू में कर लेते हैं, उनकी मैं नित्य पूजा करता हूं । मातले। जो प्रिय पत्नि युक्त हैं, पवित्र आचार विचार से रहते हैं, नित्य अग्निहोत्र करते हैं और जिनके कुटुम्ब में चैपायों (गौ आदि पशुओं) का भी पालन होता है, उनको मैं नमस्कार करता हूं । मातले। जिनका अर्थ और काम धर्ममूलक होकर वृद्वि को प्राप्त हुआ है तथा जिसके धर्म और अर्थ नियत हैं, उनको मैं प्रणाम करता हूं । धर्ममूलक धन की कामना रखने वाले ब्राम्हणों को तथा गौओं और पतिव्रता नारियों को मैं नित्य प्रणाम करता हूं । मातले। जो जीवन की पूर्ण अवस्था में मानव भोगों का उपभोग करके तपस्या द्वारा स्वर्ग में आते हैं, उनका मैं सदा ही पूजन करता हूं । जो भोगों से दूर रहते हैं, जिनकी कहीं भी आसक्ति नहीं है जो सदा धर्म में तत्पर रहते हैं, इन्द्रियों का काबू में रखते हैं, जो सच्चे सन्यासी हैं और पर्वतों के समान कभी विचलित नहीं होते हैं, उन श्रेष्ठ पुरूषों की मैं मन से पूजा करता हूं । मातले। जिनकी विद्या ज्ञान के कारण स्वच्छ है, जो सुप्रसिद्व धर्म के पालन की इच्छा रखते हैं तथा जिनके शौचाचार की प्रशंसा दूसरे लोग करते हैं, उनको मैं नमस्कार करता हूं । युधिष्ठिर ने कहा- कुरूपंगुव। भरतश्रेष्ठ। सरोवरों के बनाने का जो फल है उसे आज मैं आपके मुख से सुनना चाहता हूं । भीष्मजी ने कहा-राजन। जो तालाब बनवाता है, वह पुरूष विचित्र धातुओं से विभूषित धनाध्यक्ष कुबेर के समान दर्षनीय है। वह तीनों लोकों में सर्वत्र पूजित होता है। तालाब का संस्थापन श्रेष्ठ एवं कीर्ति जनक है। वह इस लोक और परलोक में उत्तम निवास स्थान है। वह पुत्र का घर तथा धन की वृद्वि करने वाला है । मनीषी पुरूषों ने सराबरों को धर्म, अर्थ और काम तीनों का फल देने वाला बताया है। तालाब देश में मूर्तिमान पुण्य स्वरूप है और क्षेत्र में देश का भारी आश्रय है। मैं तालाब को चारों (स्वेदज, अण्डज, उदभिज्ज, जराजयु) प्रकार के प्राणियों के लिये उपयोगी देखता हूं। जगत में जितने भी सरोवर हैं, वे सभी उत्तम संपत्ति प्रदान करते हैं । देवता, मनुष्य, गन्धर्व, पितर, नाग, राक्षस तथा स्थावर भूत- ये सभी जलाशय का आश्रय लेते हैं। अतः सरोवर खादवाने में जो गुण हैं उन सबका मैं तुमसे वर्णन करूंगा तथा ऋषियों ने तालाब खोदाने से जिन फलों की प्राप्ति बतायी है, उनका भी परिचय दे रहा हूं । जिस सरोवर में एक वर्ष तक पानी ठहरता है, उसका फल मनीषी पुरूषों ने अग्निहोत्र बताया है अर्थात उसे खोदाने वाले को प्रतिदिन अग्निहोत्र करने का पुण्य प्राप्त होता है । जिसके तालाब में गर्मीभर जल रहता है, उसके लिये ऋषियों ने वाजपेय यज्ञ के फल की प्राप्ति बतायी है । जिसके खोदवाये हुए सरोवर में सदा साधुपुरूष तथा गौऐं पानी पीती हैं, वह अपने कुल को तार देता है । जिसके जलाशय में प्यासी गौऐं पानी पीती हैं तथा तृषित मृग, पक्षी एवं मनुष्य अपनी प्यास बुझाते हैं, वह अश्‍वमेध यज्ञ का फल पाता है । मनुष्य उस तालाब में जो जल पीते, स्नान करते और तट पर विश्राम लेते हैं, वह सरा पुण्य सरोवर बनवाने वाले को परलोक में अक्षय होकर मिलता है ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।