महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 61 श्लोक 1-17

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एकषष्टितम (61) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: एकषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण का सुभद्रा के कहने से वसुदेवजी को अभिमन्युवध का वृत्तान्त सुनाना

वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! प्रतापी वसुदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण जब पिता के सामने महाभारत युद्ध का वृत्तान्त सुना रहे थे, उस समय उन्होंने उस कथा के बीच में जान-बूझकर अभिमन्युवध का वृत्तान्त छोड़ दिया। परम बुद्धिमान वीर श्रीकृष्ण ने सोचा, पिताजी अपने नाती की मृत्यु का महान् अमंगलजनक समाचार सुनकर कहीं दु:ख-शोक से संतप्त न हो उठें। इनका अप्रिय न हो जाय। इसी से वह प्रसंग नहीं सुनाया। परन्तु सुभद्रा ने जब देखा कि मेरे पुत्र के निधन का समाचार इन्होंने नहीं सुनाया, तब उसने याद दिलाते हुए कहा- ‘भैया! मेरे अभिमन्यु के वध की बात भी तो बता दो।’ इतना कहकर वह मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। वसुदेवजी ने बेटी सुभद्रा को पृथ्वी पर गिरी हुई देखा। देखते ही वे भी दु:ख से मूर्च्छित हो धरती पर गिर पड़े। महाराज! तदन्तर दौहित्रवध के दु:ख-शोक से आहत हो वसुदेवजी ने श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा- ‘बेटा कमलनयन! तुम तो इस भूतल पर सत्यवादी के रूप में प्रसिद्ध हो। शत्रुसूदन! फिर क्या कारण है कि आज तक मुझे मेरे नाती के मारे जाने का समाचार नहीं बता रहे हो। प्रभो! अपने भानजे के वध का वृत्तान्त तुम मुझे ठीक-ठीक बताओ। ‘वृष्णिनन्दन! अभिमन्यु की आँखे ठीक तुम्हारे ही समान सुन्दर थीं। हाय! वह रणभूमि में शत्रुओं द्वारा कैसे मारा गया? जान पड़ता है, समय पूरा होने के पहले मनुष्य के लिए मरना अत्यन्त कठिन होता है, तभी तो यह दारुण समाचार सुनकर भी दु:ख से मरे हृदय के सैकड़ों टुकड़े नहीं हो जाते हैं। ‘पुण्डरीकाक्ष! संग्राम में अभिमन्यु ने तुमको और अपनी माता सुभद्रा को क्या संदेश दिया था? चंचल नेत्रों वाला वह मेरा प्यारा नाती मेरे लिये क्या संदेश देकर मरा था?कहीं वह युद्ध में पीठ दिखाकर तो शत्रुओं के हाथ से नहीं मारा गया? गोविन्द! उसने युद्ध में भय के कारण अपना मुख विकृत तो नहीं कर लिया था। ‘श्रीकृष्ण! वह महातेजस्वी और प्रभावशाली बालक अपने बाल स्वभाव के कारण मेरे सामने विनीतभाव से अपनी वीरता की प्रशंसा किया करता था। ‘मेरी बेटी का वह लाडला अभिमन्यु रणभूमि में सदा द्रोणाचार्य, भीष्म तथा बलवानों में श्रेष्ठ कर्ण के साथ भी लोहा लेने का हौसला रखता था। कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि द्रोण, कर्ण और कृपाचार्य आदि ने मिलकर उस बालक को कपटपूर्वक मार डाला हो और इस प्रकार धोखे से मारा जाकर धरती पर सो रहा हो। केशव! यह सब मुझे बताओ’। इस प्रकार पिता को अत्यन्त दु:खित होकर बहुत विलाप करते देख श्रीकृष्ण स्वयं भी बहुत दु:खी हो गये और उन्हें सांत्वना देते हुए इस प्रकार बोले- ‘पिताजी! अभिमन्यु ने संग्राम में आगे रहकर शत्रुओं का सामना किया। उसने कभी भी अपना मुख विकृत नहीं किया। उस दुस्तर युद्ध में उसने कभी पीठ नहीं दिखायी। ‘लाखों राजाओं के समूहों को मारकर द्रोण और कर्ण के साथ युद्ध करते-करते जब वह बहुत थक गया, उस समय दु:शासन के पुत्र के द्वारा मारा गया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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