महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णवधर्म पर्व भाग-37
द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)
रति, मेधा, स्वाहा, श्रद्धा, शान्ति, धृति, स्मृति, कीर्ति, दीप्ति, क्रिया, तुष्टि, संतति, दिशा और प्रदिशा आदि देवियां सदा कपिला गौ का सेवन किया करती हैं। ‘देवता, पितर, गन्धर्व, अप्सराएं, लोक, द्वीप, समुद्र, गंगा आदि नदियां तथा अंगों और यज्ञों सहित सम्पूर्ण वेद नाना प्रकार के मंत्रों से कपिला गौ की प्रसन्नतापूर्वक स्तुति किया करते हैं । विद्याधर, सिद्ध, भूतगण और तारागण – ये कपिला गौ को देखकर फूलों की वर्षा करते हैं हर्ष में भरकर नाचते हैं। ‘वे कहते हैं – ‘सम्पूर्ण देवताओं से वन्दित पुण्यमयी कपिलादेवी ! तुम्हें नमस्कार है । ब्रह्माजी ने तुम्हें अग्निकुण्ड से उत्पन्न किया है । तुम्हारी प्रभा विसतृत और शक्ति महान् है । कपिलादेवी ! समस्त तीर्थ तुम्हारे ही स्वरूप हैं और तुम सबका शुभ करने वाली हो’। ‘समस्त देवता आकाश में खड़े होकर कहा करते हैं – ‘अहो ! यह कपिला गौ रूपी रत्न कितना पवित्र और कितना उत्तम है ! यह सब दु:खों को दूर करने वाला है । अहा ! यह धर्म से उपार्जित, शुद्ध, श्रेष्ठ और महान् धन है’। युधिष्ठिर ने पूछा – दैत्यों के विनाशक देवदेवेश्वर ! हव्य (यज्ञ) और कव्य (श्राद्ध) – का उत्तम समय कौन – सा है ? उसमें किन ब्राह्मणों की पूजा करनी चाहिये और किनका परित्याग ? श्रीभगवान् ने कहा – युधिष्ठिर ! देवकर्म (यज्ञ) अपरान्हकाल में – ऐसा समझना चाहिये। जो दान अयोग्य समय में किया जाता है, उस दान को राजस माना गया है। जिसके लिये लोगों में ढिंढोरा पीटा गया हो, जिसमें से किसी असत्यवादी मनुष्य ने भोजन कर लिया हो तथा जो कुत्ते से छू गया होख् उस अन्न को राक्षसों का भाग समझना चाहिये। राजन ! जितने पतित, जड और उन्मत ब्राह्मण हों, उनका देव – यज्ञ और पितृ – यज्ञ में सत्कार नहीं करना चाहिये। नपुंसक, प्लीहा रोग से ग्रस्त, कोढ़ी और राजयक्ष्मा तथा मृगी का रोगी भी श्राद्ध में आदर के योग्य नहीं माना गया है| वैद्य, पुजारी, झूठे नियम धारण करने वाले (पाखण्डी) तथा सोमरस बेचने वाले ब्राह्मण श्राद्ध में सत्कार पाने के अधिकारी नहीं हैं। गवैये, नाचने – कूदने वाले, बाजा बजाने वाले, बकवादी और योद्धा श्राद्ध में सत्कार के योग्य नहीं है। राजन् ! अग्निहोत्र न करने वाले, मुर्दा ढोने वाले, चोरी करने वाले और शास्त्रविरूद्ध कर्म से संलग्न रहने वाले ब्राह्मण भी श्राद्धमें सत्कार पाने योग्य नहीं माने जाते। जो अपरिचित हो, जो किसी समुदाय के पुत्र हो, अर्थात् जिनके पिता का निश्चित पता न हो तथा जो पुत्रिका – धर्म के अनुसार नाना के घर में रहते हों, वे ब्राह्मण भी श्राद्ध क अधिकारी नहीं हैं। युद्ध में लड़ने वाला, रोजगार करने वाला तथा पशु – पक्षियों की विक्री से जीविका चलाने वाला ब्राह्मण भी श्राद्ध में सत्कार पाने का अधिकारी नहीं है। परंतु जो ब्राह्मण व्रत का आचरण करने वाले, गुणवान्, सदा स्वाध्यायपरायण, गायत्री मन्त्र के ज्ञाता और क्रियानिष्ठ हों, वे श्राद्ध में सत्कार के योग्य माने गये हैं। श्राद्ध का सबसे उत्तम काल है सुपात्र ब्राह्मण का मिलना । जिस समय भी ब्राह्मण, दही, घी, कुशा, फूल और उत्तम क्षेत्र प्राप्त हो जायं, उसी समय श्राद्ध का दान आरम्भ कर देना चाहिये।
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